Monday 29 August 2016

साधना में नियमितता .....

साधना में नियमितता .....
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परमात्मा की नियमित उपासना से धर्म के गूढ़ से गूढ़ तत्व भी अपने आप ही समझ में आ जाते हैं| जिस तरह किसी शिला के ऊपर कंकर रखकर बड़े पत्थर से पीसते रहो तो वे कंकर धूल बनकर महीन से महीन होते जाते हैं, वैसे ही चाहे कितनी भी या कैसी भी जड़ता अपने चैतन्य में हो, नियमित साधना से निरंतर रूपांतरित होती रहती है|
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सैकड़ों हज़ारों बाधाओं के बावजूद भी अपने संकल्प से टस से मस नहीं होना चाहिए| कही जाने की आवश्यकता नहीं है| घर में एक एकांत कमरे की या एकांत स्थान की व्यवस्था कर लो और वहीँ नियमित रूप से अपने आसन पर बैठकर अपने ईष्ट देव का पूर्ण प्रेम से ध्यान करो| आगे का काम उसका है, हमारा नहीं|
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पहले हम लोग कुओं से पानी भरते थे, वहाँ रस्सी के आवागमन से शिला पर निशान पड़ जाते थे| प्राचीन मंदिरों में लोगों के आवागमन से मार्ग में पत्थर की घिसी हुई शिलाओं को मैनें देखा है| कैसी भी जड़ता हो प्रभु कृपा उसे दूर कर देती है|

आप सब परमात्मा की परम अभिव्यक्ति हो| अप सब को सादर सप्रेम नमन!
ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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