शान्ति सीता समाहिता आत्मारामो विराजते .....
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विश्व में अनेक अच्छी घटनाएँ भी घटित होती हैं, पर वे नहीं छपतीं| आध्यात्मिक क्षेत्र में भी अनेक अच्छे अच्छे कार्य हो रहे हैं, पर वे प्रकाश में नहीं आते|
आध्यात्म मार्ग पर अग्रसर पथिक को इन बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए| उसे तो निरंतर चलायमान रहना है| इस मार्ग में कोई विश्राम नहीं है|
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आध्यात्म मार्ग के पथिक को निरन्तर चलते ही रहना है| उसके लिए कोई विश्राम हो ही नहीं सकता| वह अनुकूलता की प्रतीक्षा नहीं कर सकता| अनुकूलता कभी नहीं आएगी| न तो समुद्र की लहरें कभी शांत होंगी और न नदियों की चंचलता ही कभी कम होगी| यह संसार जैसे चल रहा है वैसे ही प्रकृति के नियमानुसार चलता रहेगा, न कि हमारी इच्छानुसार|
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कौन क्या कहता है और क्या करता है, इसका कोई महत्व नहीं है| महत्व सिर्फ इसी बात का है कि हमारे समर्पण में कितनी पूर्णता हुई है| अपनी चरम सीमा तक का प्रयास हमें करना होगा|
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"राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम" .....
हमारी साधना ही राम का काज है जिसके पूर्ण होने तक कोई विश्राम नहीं हो सकता| हमारा प्राकट्य ही रामकाज के लिए हुआ है| अब कोई बहाना नहीं चलेगा| काम को कल पर नहीं टाल सकते| हमें तो इसी समय से जुट जाना है|
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सृष्टि के कण कण में रमण करने वाले राम जी कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है| हरि अनंत हैं और उनकी कथा भी अनंत है| सम्पूर्ण जगत सियाराममय है|
त्रेतायुग में सीता जी की खोज तो श्रीहनुमान जी ने कर ली थी पर यह जो ब्रह्म अंशी जीव "आत्माराम" है, इसकी सीता अर्थात शांति का हरण, विकार रुपी रावण नें कर लिया हैं, और निरंतर कर रहा है| उसी आत्माराम से उसकी शांति रूपी सीता का मिलन, विकार रुपी रावण का वध कर के करा देना ही हमारा रामकाज है|
आदिगुरू भगवान शंकराचार्य कहतें हैं ......
"शान्ति सीता समाहिता आत्मारामो विराजते" ......
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रावण को मारने से पहले सीता जी की खोज आवश्यक है| और यह दोनों काम बिना हनुमान जी के संभव नहीं हैं| "हनुमान" अर्थात जिसने अपने मान का हनन कर दिया हैं| अपने जीवन में अहंकार का नाश किये बिना हम अपने आत्मा रुपी "राम" से शांति रूपी "सीता" का मिलन नहीं करा सकते|
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मेरे कहने का भाव आप सब समझ गए होंगे| आध्यात्म की यात्रा में अपने अहंकार का समर्पण पहला पड़ाव है| सभी का कल्याण हो|
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विश्व में अनेक अच्छी घटनाएँ भी घटित होती हैं, पर वे नहीं छपतीं| आध्यात्मिक क्षेत्र में भी अनेक अच्छे अच्छे कार्य हो रहे हैं, पर वे प्रकाश में नहीं आते|
आध्यात्म मार्ग पर अग्रसर पथिक को इन बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए| उसे तो निरंतर चलायमान रहना है| इस मार्ग में कोई विश्राम नहीं है|
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आध्यात्म मार्ग के पथिक को निरन्तर चलते ही रहना है| उसके लिए कोई विश्राम हो ही नहीं सकता| वह अनुकूलता की प्रतीक्षा नहीं कर सकता| अनुकूलता कभी नहीं आएगी| न तो समुद्र की लहरें कभी शांत होंगी और न नदियों की चंचलता ही कभी कम होगी| यह संसार जैसे चल रहा है वैसे ही प्रकृति के नियमानुसार चलता रहेगा, न कि हमारी इच्छानुसार|
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कौन क्या कहता है और क्या करता है, इसका कोई महत्व नहीं है| महत्व सिर्फ इसी बात का है कि हमारे समर्पण में कितनी पूर्णता हुई है| अपनी चरम सीमा तक का प्रयास हमें करना होगा|
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"राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम" .....
हमारी साधना ही राम का काज है जिसके पूर्ण होने तक कोई विश्राम नहीं हो सकता| हमारा प्राकट्य ही रामकाज के लिए हुआ है| अब कोई बहाना नहीं चलेगा| काम को कल पर नहीं टाल सकते| हमें तो इसी समय से जुट जाना है|
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सृष्टि के कण कण में रमण करने वाले राम जी कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है| हरि अनंत हैं और उनकी कथा भी अनंत है| सम्पूर्ण जगत सियाराममय है|
त्रेतायुग में सीता जी की खोज तो श्रीहनुमान जी ने कर ली थी पर यह जो ब्रह्म अंशी जीव "आत्माराम" है, इसकी सीता अर्थात शांति का हरण, विकार रुपी रावण नें कर लिया हैं, और निरंतर कर रहा है| उसी आत्माराम से उसकी शांति रूपी सीता का मिलन, विकार रुपी रावण का वध कर के करा देना ही हमारा रामकाज है|
आदिगुरू भगवान शंकराचार्य कहतें हैं ......
"शान्ति सीता समाहिता आत्मारामो विराजते" ......
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रावण को मारने से पहले सीता जी की खोज आवश्यक है| और यह दोनों काम बिना हनुमान जी के संभव नहीं हैं| "हनुमान" अर्थात जिसने अपने मान का हनन कर दिया हैं| अपने जीवन में अहंकार का नाश किये बिना हम अपने आत्मा रुपी "राम" से शांति रूपी "सीता" का मिलन नहीं करा सकते|
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मेरे कहने का भाव आप सब समझ गए होंगे| आध्यात्म की यात्रा में अपने अहंकार का समर्पण पहला पड़ाव है| सभी का कल्याण हो|
जय गुरु ! ॐ गुरु ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
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