Tuesday, 7 October 2025

ऐसी क्या मजबूरी थी जो मुझे इस संसार में जन्म लेना पड़ा? ---

 ऐसी क्या मजबूरी थी जो मुझे इस संसार में जन्म लेना पड़ा? (संशोधित)

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पुनश्च: -- (बाद में जोड़ा हुआ) आत्मा नित्य मुक्त है। सारे बंधन मिथ्या हैं। जिनका कभी जन्म ही नहीं हुआ, जो जन्म और मृत्यु से परे हैं, उन परमशिव की मैं आराधना करता हूँ। उनका ध्यान करते करते ही यह अवशिष्ट जीवन व्यतीत हो जायेगा। इस मनुष्य का जन्म अज्ञानवश हुआ, लेकिन अब मृत्यु सचेतन होगी।
"न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥२:२०॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
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इस शरीर में मेरा जन्म होना परमशिव की वास्तव में एक परमकृपा थी, अन्यथा जीवन के उद्देश्य का पता ही नहीं चलता। इस संसार में बहुत अधिक कष्ट सहे, यह भी परमशिव की परमकृपा थी, अन्यथा संसार की निःसारता का बोध ही नहीं होता। अब उन से प्रेम हुआ है, यह भी उनकी परमकृपा है। मैं यह शरीर नहीं, दुर्विज्ञेय शाश्वत आत्मा हूँ। एक प्रत्यगात्मा का परमात्मा में विलय सुनिश्चित है। ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
५ अक्तूबर २०२५

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