मुझे मेरे मार्ग से नहीं भटकना है ---
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विश्व में इस समय अनेक कूटनीतिक गतिविधियाँ चल रही हैं और पर्दे के पीछे बहुत कुछ हो रहा है, व होने वाला है। इसमें मुझे अपने मार्ग से नहीं भटकना है। मुझसे बहुत बड़ी बड़ी अनेक भूलें हुई हैं। मैं नहीं चाहता कि वे भूलें मुझसे दुबारा हों। यह सृष्टि परमात्मा की है, मेरी नहीं। वे अपनी सृष्टि को चलाने में सक्षम हैं। उन्हें मेरी सलाह की आवश्यकता नहीं है।
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मैं सब तरफ से अपना ध्यान हटाकर बापस परमात्मा के मार्ग में अग्रसर हो रहा हूँ। मुझे पूरा मार्गदर्शन प्राप्त है। बाहर का आकर्षण बड़ा प्रबल है। लेकिन मैं इसे अपने ध्यान से हटा रहा हूँ। चाहे सारा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, लेकिन मेरी चेतना परमात्मा में ही रहेगी।
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यह भगवान का आदेश है जिसका अक्षरसः पालन करूंगा ---
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते॥६:२२॥"
"सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः॥६:२४॥"
"शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्॥६:२५॥"
"यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्॥६:२६॥"
अर्थात् -- जिस लाभकी प्राप्ति होनेपर उससे अधिक कोई दूसरा लाभ उसके माननेमें भी नहीं आता और जिसमें स्थित होनेपर वह बड़े भारी दु:ख से भी विचलित नहीं होता है।।
संकल्प से उत्पन्न समस्त कामनाओं को नि:शेष रूप से परित्याग कर मन के द्वारा इन्द्रिय समुदाय को सब ओर से सम्यक् प्रकार वश में करके।।
शनै: शनै: धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा (योगी) उपरामता (शांति) को प्राप्त होवे; मन को आत्मा में स्थित करके फिर अन्य कुछ भी चिन्तन न करे।।
यह चंचल और अस्थिर मन जिन कारणों से (विषयों में) विचरण करता है, उनसे संयमित करके उसे आत्मा के ही वश में लावे अर्थात् आत्मा में स्थिर करे।।
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मेरी चेतना केवल परमात्मा में ही रहेगी।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
५ अक्तूबर २०२५
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