हमारा मेरुदण्ड जगन्माता का मंदिर है ---
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हमारा मेरुदण्ड -- जगन्माता का मंदिर है, जिसकी सूक्ष्मदेहस्थ सुषुम्ना की ब्राह्मी-उपनाड़ी में (मूलाधारचक्र से सहस्त्रारचक्र के मध्य) वे घनीभूत प्राण-तत्व (कुंडलिनी महाशक्ति) के रूप में निरंतर विचरण कर रही हैं। उनकी इसी गतिविधि से हमारी देह जीवंत है। उनकी इस गतिविधि के प्रति निरंतर सजग रहें। उनका ध्यान और आराधना सहस्त्रारचक्र में दिखाई दे रही ज्योति के रूप में होता है। वह ज्योति उनके चरण कमल है। जब वह ज्योति सहस्त्रारचक्र से बाहर निकल कर सृष्टि की अनंतता से भी परे इस देह से बहुत ऊपर स्थित हो जाती है तब वहीं ध्यान करें। वह ज्योतिर्मय लोक -- क्षीरसागर है जहाँ भगवान विष्णु का निवास है। वही शिवलोक है। उस ऊर्ध्वस्थ विराट ज्योति का ध्यान भगवान विष्णु के पुरुषोत्तम रूप का ध्यान है। यही परमशिव का ध्यान है। उसी के बारे में गीता के पुरुषोत्तम योग में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं --
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥"
अर्थात् -- उस परम-धाम को न तो सूर्य प्रकाशित करता है, न चन्द्रमा प्रकाशित करता है और न ही अग्नि प्रकाशित करती है, जहाँ पहुँचकर कोई भी मनुष्य इस संसार में वापस नहीं आता है वही मेरा परम-धाम है।
इस बारे में श्रुति भगवती कहती हैं --
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति॥"
(मुण्डकोपनिषद २/२/११)
अर्थात् -- तत्र सूर्यः न भाति चन्द्रतारकम् च न इमाः विद्युतः न भान्ति अयं अग्निः कुतः तत् प्रकाशयेत् तं भान्तम् एव सर्वम् अनुभाति। तस्य भासा इदं सर्वम् विभाति॥
वहां न सूर्य प्रकाशित होता है और चन्द्र आभाहीन हो जाता है तथा तारे बुझ जाते हैं; वहां ये विद्युत् भी नहीं चमकतीं, तब यह पार्थिव अग्नि भी कैसे जल पायेगी? जो कुछ भी चमकता है, वह उसकी आभा से अनुभासित होता है, यह सम्पूर्ण विश्व उसी के प्रकाश से प्रकाशित एवं भासित हो रहा है।
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इसी को सरलतम शब्दों में हम कहते हैं -- कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान करो। इसका आरंभ पूर्ण भक्तिभाव से भ्रूमध्य में ध्यान से कीजिये। जगतगुरु भगवान श्रीकृष्ण स्वयं आपका मार्गदर्शन करेंगे। वे ही शिवरूप में भगवान दक्षिणामूर्ति हैं। ब्रह्म में विचरण को ब्रह्मचर्य कहते हैं। ब्रह्मचर्य, तप और समर्पण तो स्वयं को ही करना होगा। कोई दूसरा आपके लिए नहीं करेगा। आरंभ में किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय सदगुरु से मार्गदर्शन लेना होगा।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अक्तूबर २०२५
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