पलटू सोइ सुहागनी, हीरा झलके माथ ......
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संत पलटूदास जी कह रहे हैं कि सुहागन वो ही है जिसके माथे पर हीरा झलक रहा है| अब यह प्रश्न उठता है कि सुहागन कौन है और माथे का हीरा क्या है ? वह हीरा है ब्रह्मज्योति का जो हमारे माथे पर कूटस्थ में देदीप्यमान है| सुहागन है वह जीवात्मा जो परमात्मा के प्रति पूर्णतः समर्पित है|
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जब पिउ लागै हाथ, नीच ह्वै सब से रहना |
पच्छापच्छी त्याग उंच बानी नहिं कहना ||
मान-बड़ाई खोय खाक में जीते मिलना |
गारी कोउ दै जाय छिमा करि चुपके रहना ||
सबकी करै तारीफ, आपको छोटा जान |
पहिले हाथ उठाय सीस पर सबकी आनै ||
पलटू सोइ सुहागनी, हीरा झलकै माथ |
मन मिहीन कर लीजिए, जब पिउ लागै हाथ ||"
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परमात्मा को पाना है, तो उसी मात्रा में परमात्मा मिलेगा जिस अनुपात में हमारा मन सूक्ष्म होगा| सूक्ष्म यानी अहंकार के मिट जाने की दिशा में यात्रा| जिस दिन मन पूरा शून्य हो जाता है, उसी दिन हम परमात्मा हैं| फिर प्रेमी में और प्यारे में फर्क नहीं रह जाता, भक्त और भगवान में फर्क नहीं रह जाता| फर्क एक शांत झीने से धुएँ के पर्दे का है, मगर हम अपने अंतर में कोलाहल रूपी बड़ा मोटा लोहे का पर्दा डाले हुए हैं, और उसमें बंदी बनकर चिल्लाते हैं कि भगवान तुम कहाँ हो| उस कोलाहल को शांत करना पड़ेगा|
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जब गंगाजल मिल सकता हो तो हम क्यों किसी गंदी नाली का जल पीएँ ? नृत्य ही देखना हो अपने अंतर में तो मीरा का और भगवन नटराज का नृत्य ही देखें| गीत ही सुनना हो तो किसी भक्त कवि का गीत सुनें| जब तक हम अपने अहंकार अर्थात अपनी 'मैं' को नहीं त्यागते तब तक हमें परमात्मा कि प्राप्ति नहीं हो सकती|
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हमें सुहागन भी बनना है और माथे पर हीरा भी धारण करना है| हमारा सुहाग परमात्मा है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
०३ जुलाई २०१६
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