Thursday, 3 July 2025

मैं जहां पर भी हूँ, भगवान वहीं हैं, भगवान सदा मेरे साथ हैं, और निरंतर मेरी चेतना में रहते हैं ---

 

मैं जहां पर भी हूँ, भगवान वहीं हैं, भगवान सदा मेरे साथ हैं, और निरंतर मेरी चेतना में रहते हैं ---
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किसी अन्य के किए हुए भोजन से हमारी भूख नहीं मिटती। भूख मिटाने के लिए भोजन तो हमें स्वयं को ही करना होगा। इसी तरह दूसरों के द्वारा की गई तपस्या से हमारा कल्याण नहीं हो सकता। हमारा कल्याण हो, हम कृतकृत्य हों, इसके लिए स्वयं को ही तपस्या करनी होगी।
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हम संतों की सेवा करते हैं क्योंकि हमारे शास्त्र हमें सत्संग और संत-सेवा का आदेश देते हैं। संत हमें प्रेरणा देते हैं, हमें प्रोत्साहित करते हैं, और आवश्यक होने पर हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं, इसलिए वे पूज्य हैं। उनका अस्तित्व ही हमारे लिये कल्याणकारक है। साहित्य में संतों के चरण-रज की बड़ी महिमा है, लेकिन वह भाषा का एक अलंकार मात्र है। मानसिक रूप से आप गुरु-चरणों में प्रणाम निवेदित कीजिये, मानसिक रूप से उनके चरणों की धूल में स्नान कीजिये और उसे माथे पर लगाइये। इसका बड़ा महत्व है। लेकिन उनकी चरण-रज को लेने, और चरण-स्पर्श के लिये आप मारामारी और धक्का-मुक्की करते हैं, दूसरों को नीचे गिराते हैं, दूसरों के शरीर पर पैर रखकर आगे बढ़ते हैं, और अभद्र व्यवहार करते हैं, तो ऐसी भक्ति किस काम की? ऐसी भक्ति नहीं चाहिए।
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ऐसा मेरे साथ तीन बार हुआ है। एक बार तो मथुरा में और एक बार नाथद्वारा में सपत्नीक दर्शन करने गए तब देखा कि दर्शन के समय बड़ी भयंकर मारामारी थी। हम दूर खड़े रहे, और भगवान से प्रार्थना की कि बड़ी दूर से आये हैं, दर्शन दे दो, नहीं तो बड़ा क्षोभ होगा। भगवान की कृपा से वहाँ व्यवस्था में खड़ीं कुछ महिला पुलिस कर्मियों को हमारे पर बड़ी दया आई और उन्होने रास्ता बनाकर हमें दर्शन करवाये।
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एक बार झारखंड के देवघर में भगवान शिव के दर्शन करने गए तब वहाँ पागलों की सी भीड़ थी। पुलिस वाले नियंत्रित कर कर के भीड़ को निपटा रहे रहे थे। वहाँ जाकर भगवान से यही प्रार्थना की कि कैसे भी एक बार यहाँ से जीवित बापस चले जाएँ, फिर दुबारा कभी भी यहाँ नहीं आयेंगे। बड़ी मुश्किल से जान बची।
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दक्षिण भारत के अनेक प्रसिद्ध मंदिरों में बिना धोती पहिने आप अंदर नहीं जा सकते। मुझे यह व्यवस्था बड़ी अच्छी लगी। पुरुषों को तो ऊपर से बानियान भी उतारनी पड़ती है। महिलाओं के लिये साड़ी पहिनना अनिवार्य है। अभी चार महीनों पूर्व ही कर्नाटक में गोकर्ण नामक स्थान में चार सप्ताह के लिये गया था। वहाँ आसपास के कुछ गाँव बड़े अच्छे और सुंदर हैं। स्विट्जरलेंड में भी इतना सौंदर्य नहीं है। वहाँ एक मित्र ने एकांत में रहने की मेरी व्यवस्था कर दी थी। गोकर्ण में भगवान शिव का महाबलेश्वर नामक एक अति प्रसिद्ध मंदिर है, जिसमें जाने के लिये महिलाओं के लिये साड़ी और पुरुषों के लिये सिर्फ धोती पहिनना अनिवार्य है। मुझे यह बात बड़ी अच्छी लगी। तमिलनाडु में कन्याकुमारी और शचीन्द्रम के मंदिरों में भी यही नियम है।
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भारत के अनेक प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन के लिये गया हूँ। अच्छे-बुरे अनेक अनुभव हुए है। लेकिन मेरी श्रद्धा में कभी कोई कमी नहीं आई है। सिर्फ दर्शन के उद्देश्य से अब कहीं भी नहीं जाता। मैं जहां पर भी हूँ, भगवान वहीं है। भगवान सदा मेरे साथ हैं, और निरंतर मेरी चेतना में रहते हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ जुलाई २०२४

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