भगवान के पास किसी को कुछ भी देने के लिए कोई सामान नहीं है।
जो कुछ भी हमें दिखाई दे रहा है या नहीं दिखाई दे रहा है -- वह सब कुछ तो वे स्वयं हैं। उनके सिवाय कुछ भी या कोई भी अन्य नहीं है। हाँ, हमारे पास एकमात्र सामान हमारा "अन्तःकरण" है, और कुछ भी सामान हमारे पास नहीं है। वह उनको समर्पित करने के पश्चात उनमें और हमारे में भी कोई भेद नहीं है।
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जो यह "मैं" और "मेरा" है, वह भी सब कुछ भगवान ही हैं। कुछ बचा ही नहीं है। भगवान स्वयं को ही दे सकते हैं, और हम भी स्वयं को ही दे सकते हैं। मैं दुबारा कह रहा हूँ कि उनके सिवाय कोई भी या कुछ भी अन्य नहीं है।
भगवान से आजतक जितनी भी प्रार्थनाएँ की हैं, जो कुछ भी उनसे माँगा है, जितनी भी अभीप्सा थी, उनके साथ साथ सारी महत्वाकांक्षाएँ, अरमान, विचार, भाव, और सारे संकल्प -- अब महत्वहीन हैं। न तो मैं कोई याचक या मंगता-भिखारी हूँ, और भगवान भी कोई सेठ-साहूकर नहीं हैं।
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नारायण !! नारायण !! हरिःॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ नवंबर २०२२
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