Monday, 18 November 2024

"सनातन धर्म" पर एक लघु चर्चा ---

 "सनातन धर्म" ---

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सनातन धर्म पर अपनी अति अल्प और सीमित बुद्धि से एक चर्चा करना चाहता हूँ। आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे। जितना मुझे अल्प ज्ञान है उसे ही यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ।
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सनातन धर्म को नष्ट करने का पूरा प्रयास अधर्मी असुरों ने किया है लेकिन सत्य-सनातन-धर्म की पुनःप्रतिष्ठा और वैश्वीकरण की प्रक्रिया आरंभ हो गयी है। यह कार्य भगवान ने स्वयं अपने हाथों में ले लिया है, और उनकी प्रकृति अब इसे सम्पन्न करेगी। जो धर्मद्रोही हैं वे अपने कर्मफलों से अपनी आप ही नष्ट हो जाएँगे। यह एक देवों और दानवों का देवासुर संग्राम है जो सृष्टि के आदिकाल से ही चलता आया है।
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सनातन धर्म के नियमों से ही यह सृष्टि संचालित है। धर्म और अधर्म को समझने के लिए सम्पूर्ण महाभारत से अधिक अच्छा कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है। धर्म से विमुख करने के लिये हमें अधर्मी फिरंगी पादरियों ने यह सिखाया कि महाभारत को घर में रखने से घर में कलह होती है। यहाँ तक कि महाभारत के चित्रों को को भी घर पर रखने को बुरा बताया गया। जब कि हर घर में महाभारत अपने मूल रूप में होनी चाहिए। अंग्रेजों के वेतनभोगी पादरियों और मार्क्सवादी अधर्मियों द्वारा प्रक्षिप्त किए हुए अंशों को कैसे भी हटाना चाहिए, इस विषय पर कोई शोधकार्य हुआ भी है तो मुझे पता नहीं। महाभारत में धर्म और अधर्म को बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है। रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थों के स्वाध्याय से धर्म और अधर्म की समझ बहुत गहरी और स्पष्ट हो जाती है।
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जिस दिन मनुष्य की बुद्धि यह समझ लेगी कि वह एक शाश्वत आत्मा है, यह नश्वर देह नहीं; उसी दिन से उसे सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) क्या है, यह समझ में आने लगेगा। प्रत्यक्ष रूप से सनातन धर्म के चार मुख्य स्तम्भ हैं -- आत्मा की शाश्वतता, कर्मफलों का सिद्धान्त, पुनर्जन्म, और ईश्वर के अवतारों में आस्था।
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हमारे विचार, भाव और आचरण -- हमारे कर्म है, जिसका फल भुगतने के लिए बार बार हमारा जन्म होता है। कर्म करने की स्वतन्त्रता सबको है लेकिन फल भुगतने की नहीं। हम जो भी हैं, वह हमारे पूर्वजन्मों का फल है, और हम जो भी होंगे, वह इस जन्म के कर्मों का फल होगा। कर्मफलों से मुक्ति भी भक्ति और समर्पण द्वारा ही मिल सकती है, लेकिन उसके लिए तप करना पड़ता है।
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परमात्मा की प्राप्ति यानि आत्म-ज्ञान की प्राप्ति ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य है। इसका मार्ग सनातन धर्म ही बताता है। हम एक शाश्वत आत्मा हैं। आत्मा का स्वधर्म क्या है? इसका पता लगाकर अपने स्वधर्म का पालन कीजिये, यही हमारा सब से बड़ा कर्तव्य और सनातन धर्म का पालन है।
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मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण दिये हैं। उनका धारण धर्म है, और उनका अभाव अधर्म है। वैशेषिक सूत्रों में दी हुई कणाद ऋषि की परिभाषा के अनुसार --- अभ्यूदय और निःश्रेयस की सिद्धि - धर्म है।
गीता के अनुसार समत्व में स्थिति ही वास्तविक ज्ञान है। समत्व में स्थित व्यक्ति ही ज्ञानी है।
प्रत्येक मनुष्य को कभी न कभी, किसी न किसी जन्म में परमात्मा के मार्ग पर आना ही पड़ेगा। परमात्मा से हमारा निकास हुआ है, और परमात्मा में ही हमको बापस जाना पड़ेगा। यह परमात्मा का मार्ग ही सत्य-सनातन-धर्म है।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ नवंबर २०२४

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