Sunday, 15 January 2023

आप मुझे कितना भी दर्द और पीड़ा दो, लेकिन कभी भी अपने प्रेम से वंचित नहीं कर सकते ---

 हे परमशिव, आप मुझे कितना भी दर्द और पीड़ा दो, लेकिन कभी भी अपने प्रेम से वंचित नहीं कर सकते। संसार में यदि कष्ट कम हैं तो आप मुझे घोर नर्क में डाल सकते हो, लेकिन आप कभी मेरा साथ नहीं छोड़ सकते। जहाँ भी आपने मुझे रखा है, वहाँ किसी भी तरह के असत्य का अंधकार हो ही नहीं सकता। मैं आपका परमप्रेम, आपकी अनंत विराटता, और प्रकाशों का प्रकाश, ज्योतियों की ज्योति - ज्योतिषाम्ज्योति हूँ; यह नश्वर देह नहीं।

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अनेक जन्मों का पुण्य जब फलीभूत होता है तब भगवान के प्रति भक्ति जागृत होती है। भक्ति और समर्पण से ही भगवान की कृपा प्राप्त होती है। भगवान की कृपा से ही भगवान की प्राप्ति होती है, न कि स्वयं के प्रयासों से। भगवान की कृपा से ही ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय सद्गुरु लाभ होता है जो हमें भगवान की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है और ब्रह्मज्ञान देता है। गुरु वही है जो हमारे चैतन्य से अज्ञान का अंधकार मिटाता है। अन्य कोई गुरु नहीं हो सकता।
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वास्तव में भगवान स्वयं ही हमारे गुरु हैं। हम उनमें गुरुभाव रखेंगे तो वे भी हमारे में शिष्य भाव रखेंगे। हमारा लक्ष्य भगवान की प्राप्ति है, न कि इधर-उधर की फालतू बातें। गुरु महाराज का स्पष्ट सीधा आदेश है कि -- "जो मैं हूँ, तुम वही बनो।" मुझे पता है कि वे भगवान के साथ एक हैं, और मुझे भी भगवान के साथ एक होने का आदेश दे रहे हैं। स्पष्ट रूप से उन्होंने एक प्रकाशमय मार्ग दिखाया है, जहाँ कोई अंधकार नहीं है। किसी भी तरह का कोई संशय उन्होनें मुझमें नहीं छोड़ा है। सब कुछ स्पष्ट है।
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करुणावश अब वे ही सारी उपासना कर रहे हैं। वे एक प्रवाह है जो मेरे माध्यम से प्रवाहित हो रहे हैं। मैं तो एक निमित्त साक्षी मात्र हूँ। हे प्रभु, मैं आपके साथ एक हूँ। जो आप हैं, मैं भी वही हूँ। आप मुझमें व्यक्त हो रहे हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२३

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