मकर संक्रांति की क्या शुभ कामना दूँ? मेरी हरेक साँस में संक्रांति है ---
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मैं साँस लेता हूँ तो वह मकर-संक्रांति है। साँस छोड़ता हूँ तो वह कर्क-संक्रांति है।
उत्तरायण और दक्षिणायण -- अब कहीं बाहर नहीं, मेरे इस शरीर में ही हरेक साँस के साथ घटित हो रहे हैं। मेरा सहस्त्रारचक्र -- उत्तर दिशा है; मूलाधारचक्र -- दक्षिण दिशा है; भ्रूमध्य -- पूर्व दिशा है; और आज्ञाचक्र -- पश्चिम दिशा है। सुषुम्ना की ब्रह्मनाड़ी मेरा परिक्रमा पथ है।
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जब साँस लेता हूँ तब घनीभूत-प्राण (कुंडलिनी) मूलाधारचक्र से उठकर सब चक्रों को भेदते हुए, सहस्त्रारचक्र में आ जाते हैं, यह मकर संक्रांति है। जब साँस छोड़ता हूँ तब ये घनीभूत-प्राण (कुंडलिनी) उसी मार्ग से बापस मूलाधार-चक्र में चले जाते हैं। यह कर्क संक्रांति है। मैं इन का साक्षीमात्र हूँ। इन का रहस्य परम गोपनीय हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२३
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