कल स्वामी विवेकानंद के ऊपर अनेक लेख लिखे गए थे। लेकिन कुछ बातों का लोग उल्लेख नहीं करते।
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स्वामी विवेकानंद को "स्वामी विवेकानंद" का नाम खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने दिया था। इससे पूर्व उनका नाम "स्वामी विविदिशानन्द था। खेतड़ी के राजा अजीत सिंह, अलसीसर के ठाकुर साहब के पुत्र थे जो खेतड़ी ठिकाने में गोद गए थे। स्वामी विवेकानंद को अमेरिका जाने की प्रेरणा और सारा खर्च राजा अजीत सिंह ने दिया था। स्वामी विवेकानंद को मारवाड़ी पगड़ी भी उन्होंने ही पहनाई थी, जिसे स्वामी विवेकानंद बाहर हर समय पहिनते थे।
खेतड़ी के ही एक परम विद्वान पंडित जी थे जिन्होंने स्वामी विवेकानंद को संस्कृत भाषा और संस्कृत व्याकरण का ज्ञान कराया था। उन्होंने ही स्वामी विवेकानंद को अनेक धर्म-शास्त्रों/ग्रंथों का अध्ययन करवाया था।
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जसरापुर के स्व.पंडित झाबरमल जी शर्मा को भी धन्यवाद देना चाहिए। विवेकानंद जी का सारा उपलब्ध साहित्य खेतड़ी ठिकाने के अभिलेखागारों में छिपा हुआ था, जिसे पंडित झाबरमल जी शर्मा ने विश्व के समक्ष उजागर किया। आज जो कुछ भी हम स्वामी विवेकानंद के बारे में जानते हैं, उसके पीछे पंडित झाबरमल जी शर्मा की तपस्या है।
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उस काल में पास ही के चिड़ावा नगर में अनेक बहुत बड़े विद्वान पंडित हुआ करते थे। उस समय चिड़ावा में पंडित स्नेही राम जी लाटा भी रहते थे, जो वेद-वेदांगों के प्रख्यात विद्वान थे। चिड़ावा के वचनसिद्ध महात्मा पंडित गणेशनारायण जी शर्मा भी उसी काल में थे। पता नहीं इन दोनों की कभी स्वामी विवेकानंद जी से भेंट हुई या नहीं। इस बारे में कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
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मैं रामकृष्ण मिशन के मंदिरों और आश्रमों में कुछ निजी कारणों से नहीं जाता। वहाँ माँ काली के साथ मदर टेरेसा का भी चित्र होता है। पूरा मिशन लगता है अमेरिकन ईसाईयों के प्रभाव में है। मैं इस संस्था का पूरा सम्मान करता हूँ, लेकिन मदर टेरेसा के चित्रों और संस्था के ईसाईकरण के कारण मेरी कोई रुचि इस संस्था में नहीं है। इस संस्था के सन्यासियों को मैंने मांस-मच्छी खाते हुए देखा है जो मेरी आस्था के विरुद्ध है। अतः उनमें मेरी कोई श्रद्धा नहीं है।
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कोई गलत बात मैंने लिखी है तो क्षमा चाहता हूँ। धन्यवाद। जयसियाराम !!
१३ जनवरी २०२३
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