कामोत्तेजना से बचने का उपाय ---
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युवा साधकों के समक्ष सबसे बड़ी बाधा है -- कामोत्तेजना|
यह एक सत्य है जिससे बचने के उपाय भी मनीषियों ने बताएं हैं|
विपरीत लिंग के व्यक्ति की उपस्थिति में युवा साधक कामोत्तेजित होकर एक उलझन में पड जाता है|
जब ऐसी स्थिति आ जाये तो घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है|
आप मेरुदंड सीधा कर बड़ी शांति से बैठ जाएँ और उड्डियान बन्ध करें यानि फेफड़ों से बलपूर्वक सारी हवा बाहर निकाल कर पेट को अन्दर सिकोड़ लें और ऐसा भाव करें कि जननांगों में एकत्र समस्त ऊर्जा बापस मेरुदंड में जा कर नाभि की ओर जा रही है|
जब सांस लेना आवश्यक हो जाये तो सांस लें और बार बार उड्डियान बन्ध करते रहें| ऐसा तब तक करते रहें जब तक कामोत्तेजना शांत नहीं हो जाए|
यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि मनुष्य की नाभि में एक ऐसी शक्ति है जो जननांगो से लौटती हुई ऊर्जा को ह्रदय की ओर प्रेषित कर देती है| यही ऊर्जा एक दिव्य प्रेम और भक्ति में परावर्तित हो जाती है|
साधक को दिन में तीन चार बार खाली पेट तीनों बन्ध (मूलबन्ध, उड्डियानबन्ध और जलंधरबन्ध) एकसाथ लगाकर अग्निसार क्रिया का अभ्यास करना चाहिए|
उपरोक्त अभ्यास आपके ब्रह्मचर्य में तो सहायक होगा ही, आपकी ध्यान साधना और कुंडलिनी जागरण में भी सहायक होगा|
कुण्डलिनी के बारे तरह तरह के उलटे सीधे लेख लिखकर अनेक भ्रांतियां फैलाई गयी हैं| कुण्डलिनी शक्ति आपकी प्राण ऊर्जा का ही एक घनीभूत रूप है| जिस ऊर्जा का आपकी बहिर्मुखी इन्द्रियों द्वारा निरंतर क्षय हो रहा है वही ऊर्जा ध्यान साधना में जब आपकी चेतना अंतर्मुखी हो जाती है तब मूलाधार चक्र में प्रकट हो ऊर्ध्वमुखी हो जाती है| यही कुण्डलिनी शक्ति है| इसका जागरण ही वीर्य का ऊर्ध्वगमन है| इसका आभास अजपा-जप के साधकों को भी शीघ्र हो जाता है|
साधक को मांस, मछली, अंडा, मदिरा और गरिष्ट भोजन के आहार का पूर्ण त्याग करना होगा| किसी भी परिस्थिति में कुसंग का पूर्ण त्याग करना होगा| सत्साहित्य और सत्संग के बारे में जितना लिखा जाये उतना ही कम है|
उपरोक्त साधना आपको न सिर्फ कामोत्तेजना से मुक्ति दिलाएगी बल्कि जीवन में तनाव को भी कम करेगी|
धन्यवाद| आप सब में भगवान नारायण को नमन| ॐ तत्सत्|
कृपा शंकर
२० फरवरी २०१३
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