Saturday, 19 February 2022

इस शरीर व अंतःकरण से तुम्हें जो भी काम लेना है, वह अभी ले लो ---

 हे भगवती ! इस शरीर व अंतःकरण से तुम्हें जो भी काम लेना है, वह अभी ले लो। ब्रह्मनिष्ठा के बाद मेरे लिए इन का कोई प्रयोजन नहीं रहा है।

.
मेरी कोई इच्छा शेष नहीं रही है। मेरे गुण-दोष सब तुम्हें समर्पित हैं। परमशिव के साथ एक होकर मुझे भी अपने साथ एक करो। पृथकता का कोई अवशेष न रहे।
.
ब्राह्मण का जीवन -- तप और त्याग के लिए ही बना है। मेरा एकमात्र संबंध अब परमात्मा से ही है। ब्राह्मण का जन्म ही निज जीवन में परमात्मा की प्राप्ति और परमात्मा को व्यक्त करने के लिए होता है। जब उच्च ब्राह्मण कुल में जन्म लिया है तो ब्राह्मण का धर्म भी निभायेंगे। इसी जन्म में परमात्मा का साक्षात्कार करेंगे।
ब्रहमनिष्ठा के पश्चात अब इस शरीर और इसके साथ जुड़े अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) से भी कोई मोह नहीं रहा है। कूटस्थ चैतन्य में भगवान नित्य बिराजित हैं। अब से तो यह जीवन परमात्मा की ही पूर्ण अभिव्यक्ति होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ फरवरी २०२२

No comments:

Post a Comment