आज माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदा-जयंती थी| सभी श्रद्धालुओं को मेरा नमन! विद्युत् प्रभा के रंग जैसी, हाथ में त्रिशूल लिए, कन्या रूप में प्रकट होकर माँ नर्मदा ने अपने तट पर तपस्यारत महात्माओं की सदा रक्षा की है| इसीलिए पूरा नर्मदा तट एक तपोभूमि रहा है| "नर्मदा सरितां श्रेष्ठ रुद्रतेजात् विनि:सृता| तारयेत् सर्वभूतानि स्थावराणि चरानी च||"
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अमरकंटक के शिखर पर भगवान शिव एक बार गहरे ध्यान में थे कि सहसा उनके नीले कंठ से एक कन्या का आविर्भाव हुआ जिसके दाहिने हाथ में एक कमंडल था, और बाएँ हाथ में जपमाला| वह कन्या उनके दाहिने पांव पर खड़ी हुई और घोर तपस्या में लीन हो गयी| जब शिवजी का ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने उस कन्या का ध्यान तुडाकर पूछा --- हे भद्रे, तुम कौन हो? मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुआ हूँ| तब उस कन्या ने उत्तर दिया --- समुद्र मंथन के समय जो हलाहल निकला था, और जिसका पान करने से आप नीलकंठ कहलाये, मेरा जन्म उसी नीलकंठ से हुआ है| मेरी आपसे विनती है कि मैं इसी प्रकार आपसे सदा जुडी रहूँ| भगवान शिव ने कहा -- "तथास्तु! पुत्री, तुम मेरे तेज से जन्मी हो, इसलिए तुम न केवल मेरे संग सदा के लिए जुड़ी रहोगी बल्कि तुम महामोक्षप्रदा नित्य सिद्धि प्रदायिका रहोगी|" वरदान देने के बाद भगवान शिव तुरंत अंतर्ध्यान हो गए और वह कन्या पुनश्चः तपस्या में लीन हो गयी| भगवान शिव पुन: कुछ समय पश्चात उस कन्या के समक्ष प्रकट हुए और कहा -- "तुम मेरा जलस्वरूप बनोगी, मैं तुम्हे 'नर्मदा' नाम देता हूँ और तुम्हारे पुत्र के रूप में सदा तुम्हारी गोद में बिराजूँगा| हे महातेजस्वी कन्ये! मैं अभी से तुम्हारी गोद में चिन्मयशक्ति संपन्न होकर शिवलिंग के रूप में बहना आरम्भ करूँगा|" तभी से जल रूप में नर्मदा ने विन्ध्याचल और सतपूड़ा की पर्वतमालाओ के मध्य से पश्चिम दिशा की ओर बहना आरम्भ किया| माँ नर्मदा का एक नाम रेवा भी है| "सर्वसिद्धिमेवाप्नोति तस्या तट परिक्र्मात्" उसके तट की परिक्रमा से सर्वसिद्धियों की प्राप्ति होती है|
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रुद्रतेज से उत्पन्न हुईं, भगवान शिव की मानस कन्या -- नर्मदा जी के बारे में लोकनाथ ब्रह्मचारी जी जो महातप:सिद्ध शिवदेहधारी जीवनमुक्त महात्मा थे, ने अपने शिष्यों को बताया था कि एक बार नर्मदा की परिक्रमा करते समय वे नर्मदा तट पर मुंडमहारण्य में निर्जन गंगावाह घाट पर बैठे हुए थे कि एक विचित्र दृश्य देखा| एक काली गाय जिसका शरीर एकदम काला था आई और नर्मदा नदी में स्नान करने उतर गयी| जब वह नहाकर बाहर निकली तो उसका रंग बिलकुल गोरा हो गया और वह गाय बहुत तेजी से उस महारण्य में लुप्त हो गयी| इसका रहस्य जानने के लिए वे समाधिस्थ हुए और उन्हें बोध हुआ कि वह काली गाय और कोई नहीं साक्षात माँ गंगा थीं जो नर्मदा में स्नान करने आई थीं|
इसके बारे में एक पौराणिक कथा है जिसमें मार्कन्डेय मुनि कहते हैं कि माँ गंगा ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की और भगवान से निवेदन किया कि हर प्रकार के पापी लोग मुझमें स्नान कर पापमुक्त होते हैं उनके पापविष की ज्वाला में मैं झुलसती रहती हूँ, अतः इस पाप की जलन से मुक्त होने का कोई उपाय मुझे बताइये| भगवान विष्णु ने प्रतिदिन गंगाजी को नर्मदाजल में स्नान कर पापमुक्त होने को कहा|
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नर्मदा -- रुद्रतेज से उत्पन्न हुई भगवान शिव की मानस कन्या है| जन सामान्य को तो उनके दर्शन भौतिक जलरूप में ही होते हैं, लेकिन तपस्वी महात्माओं को समाधि की अवस्था में उनके दर्शन एक सूक्ष्म दैवीय सत्ता के रूप में होते हैं|
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माँ नर्मदे, आपकी जय हो! यदि फिर कभी इस धरा पर मेरा पुनर्जन्म हो तो उस जन्म में मैं जीवनमुक्त परमहंस सिद्धावस्था में आपके तट पर विचरण करूँ, इतनी कृपा अवश्य करना|
ॐ तत्सत् !! ॐ नमः शिवाय !! हर नर्मदे हर !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ फरवरी २०२१
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