Wednesday, 18 July 2018

पिंजरे का पंछी और बैलगाड़ी का बैल .....

पिंजरे का पंछी और बैलगाड़ी का बैल .....
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पिंजरे में बँधे पक्षी, बैलगाडी में जुड़े बैल, और हमारे में कोई अंतर नहीं है| हम एक बैल की तरह हैं जो बैलगाड़ी में जुड़ा हुआ है और जिनको हम प्रियजन कहते हैं वे डंडे से मार मार कर हमें हाँक रहे हैं| हम उनकी मार खाकर और उनकी इच्छानुसार चलकर बहुत प्रसन्न हैं और इसे अपना कर्त्तव्य मान रहे हैं|
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हमारा जन्म ही विवशता में इसी कारण होता है कि हम अपनी अतृप्त कामनाओं के दास हैं| हम जन्म ही दास के रूप में लेते है और दास के रूप में ही मरते हैं| कामनाएँ सबसे विकट अति सूक्ष्म अदृष्य बंधन हैं| कामनाओं में बंध कर हम स्वतः ही गुलाम बन जाते हैं, इसके लिए किसी भी प्रयास की आवश्यकता नहीं पड़ती है| जब कि स्वतंत्रता के लिए हमें अत्यंत दीर्घकालीन प्रयास करने पड़ते हैं| जो निरंतर बिना थके प्रयासरत रहते हैं, वे ही स्वतंत्र हो पाते हैं|
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स्वतंत्रता अपना मूल्य माँगती हैं, वह निःशुल्क नहीं होती| जीवन में जो कुछ भी मूल्यवान है उसकी कीमत चुकानी पडती है| बंधन में बंधना कोई दुर्भाग्य नहीं है, दुर्भाग्य है ..... मुक्त न होने का प्रयास करना| गुलाम होकर जन्म लेना कोई दुर्भाग्य नहीं है, पर गुलामी में मरना वास्तव में दुर्भाग्य है|
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जीवन में तब तक कोई आनंद या संतुष्टि नहीं मिल सकती जब तक हम अपनी आतंरिक स्वतंत्रता को प्राप्त ना कर लें| कामनाओं में बंधे होना ही वास्तविक परतंत्रता है| कामनाओं में बंधे मनुष्य, पिंजरे में बंधे पक्षी और बैलगाड़ी में जुड़े बैल में कोई अंतर नहीं है| पराधीन मनुष्य कभी मुक्ति का आनंद नहीं ले सकता| वास्तविक स्वतन्त्रता सिर्फ परमात्मा में ही है, अन्यत्र कहीं नहीं|
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किसी दूसरे को दोष देने का कोई लाभ नहीं है| अपने दुःखों के जिम्मेदार हम स्वयं हैं .....
"सुखस्य दु:खस्य न कोऽपि दाता, परो ददाति इति कुबुद्धिरेषा |
अहं करोमि इति वृथाभिमान:, स्वकर्मसूत्रै: ग्रथितोऽहि लोक: || --- आध्यात्म रामायण
कोई किसी को सुख या दुःख नहीं दे सकता, सिर्फ एक कुबुद्धि ही यह सोचता है कि दूसरे मुझे दुःख या सुख दे रहे हैं| कर्ताभाव भी एक व्यर्थ का अभिमान है, इस लोक में सब अपने कर्मफलों से बँधे हुए हैं|
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ॐ गुरुभ्यो नमः| सब पर परमात्मा की परम कृपा हो! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ जुलाई २०१८

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