Wednesday, 18 July 2018

आनंद "प्यास" में है, "तृप्ति" में नहीं .....

आनंद "प्यास" में है, "तृप्ति" में नहीं .....
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जो आनंद "विरह" में है वह "मिलन" में नहीं हो सकता| परमात्मा नहीं मिलें तो ही अच्छा है| बस उन्हें पाने की यह "अभीप्सा" यानि "अतृप्त प्यास" और "तड़प" बनी रहे| ह्रदय में एक "प्रचंड अग्नि" जल रही है, एक बड़ी "प्यास" और "तड़प" है परमात्मा को पाने की| उसका अपना ही आनंद है| यदि परमात्मा मिल गए तो यह "प्यास" बुझ जायेगी, अतः परमात्मा नहीं चाहिए, बस उनको पाने की "अभीप्सा" रूपी "प्रचंड अग्नि" जलती रहे| जो आनंद इस "द्वैत" में है, वह "अद्वैत" में नहीं हो सकता|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जुलाई २०१८

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