Wednesday, 11 July 2018

परमात्मा के मार्ग पर चलने वाले पथिकों के लिए .....

परमात्मा के मार्ग पर चलने वाले पथिकों के लिए .....
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जो लोग इस भ्रम में हैं कि भगवान की साधना से कुछ मिल जाएगा, तो उन्हें मैं यह बता देना चाहता हूँ कि मिलेगा तो कुछ नहीं, जो कुछ पास में है वह भी चला जाएगा| भगवान को समर्पित होने पर सबसे पहिले तो हम जाति-विहीन हो जाते हैं, फिर वर्ण-विहीन हो जाते हैं, घर से भी बेघर हो जाते हैं, देह की चेतना भी छुट जाती है और मोक्ष की कामना भी नष्ट हो जाती है| विवाह के बाद कन्या अपनी जाति, गौत्र और वर्ण सब अपने पति की जाति, गौत्र और वर्ण में मिला देती है| पति की इच्छा ही उसकी इच्छा हो जाती है| वैसे ही परमात्मा को समर्पित होने पर अपना कहने को कुछ भी नहीं बचता, सब कुछ उसी का हो जाता है| 'मैं' और 'मेरापन' भी समाप्त हो जाता है| सब कुछ 'वह' ही हो जाता है| भगवान् की जाति क्या है ? भगवान् का वर्ण क्या है ? भगवान् का घर कहाँ है ? मैं कौन हूँ? .... ऐसे प्रश्न भी तिरोहित हो जाते हैं|
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एक बात तो है कि जो कुछ भी परमात्मा का है ..... सर्वज्ञता, सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमता आदि आदि आदि उन सब पर हमारा भी जन्मसिद्ध अधिकार है| हम उनसे पृथक नहीं हैं| जो भगवान की जाति है वह ही हमारी जाति है| जो उनका घर है वह ही हमारा घर है| जो उनकी इच्छा है वह ही हमारी इच्छा है|
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मेरी भावनाएँ ....... तुम महासागर हो तो मैं जल की एक बूँद हूँ जो तुम्हारे में मिलकर महासागर ही बन जाती है| तुम एक प्रवाह हो तो मैं एक कण हूँ जो तुम्हारे में मिलकर विराट प्रवाह बन जाता है| तुम अनंतता हो तो मैं भी अनंत हूँ| तुम सर्वव्यापी हो तो मैं भी सदा तुम्हारे साथ हूँ| जो तुम हो वह ही मैं हूँ| मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| जब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता तो तुम भी मेरे बिना नहीं रह सकते| जितना प्रेम मेरे ह्रदय में तुम्हारे प्रति है, उससे अनंत गुणा प्रेम तो तुम मुझे करते हो| तुमने मुझे प्रेममय बना दिया है| जहाँ तुम हो वहीँ मैं हूँ, जहाँ मैं हूँ वहीं तुम हो| मैं तुम्हारा अमृतपुत्र हूँ, तुम और मैं एक हैं| ॐ शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि | ॐ ॐ ॐ ||
(यह ध्यान की एक अनुभूति है जो प्रायः सभी उच्च स्तर के साधकों को होती है)
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० जुलाई २०१५

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