Wednesday 11 July 2018

क्या भारत के हर जिले में शरिया अदालतें आवश्यक हैं?

क्या भारत के हर जिले में शरिया अदालतें आवश्यक हैं?
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भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्रीमती इंदिरा गाँधी ने राजनीतिक कारणों से अपने शासन काल में "मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड" नाम की एक संस्था बनवाई और उसका पंजीकरण भी एक वैधानिक संस्था के रूप में करवाया था|
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जैसा कि समाचारों में पढ़ रहे हैं, अब उस संस्था की माँग है कि भारत के मुसलमानों के लिए हर जिले में अलग से शरिया अदालतें बनवाई जाएँ| अर्थात जो मुसलमान हैं वे सिर्फ शरिया क़ानून का ही पालन करेंगे, भारत के संविधान या नागरिक संहिता का नहीं| इस का अर्थ है कि देश में दो तरह के कानून होंगे ..... (१) शरिया कानून मुसलमानों के लिए और (२) नागरिक संहिता के कानून गैर मुसलमानों के लिए|
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इस व्यवस्था को लागू करने के लिए फिर पुलिस भी दो तरह की होगी .... एक तो शरिया पुलिस और दूसरी सिविल पुलिस| कोई मुसलमान अपराध करेगा तो उसे शरिया पुलिस ही गिरफ्तार कर सकेगी और उस पर मुक़द्दमा भी शरिया अदालत में ही चलेगा|
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क्या इस तरह की व्यवस्था किसी अन्य देश में भी है ? क्या एक देश में दो तरह की नागरिक संहिताएँ संभव हैं? क्या यह देश के एक और विभाजन की तैयारी नहीं है? इस तरह की माँग को आरम्भ में ही समाप्त कर मुस्लिम पर्सनल बोर्ड नाम की संस्था को बंद कर एक सामान्य नागरिक संहिता लागू कर देनी चाहिए|

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