Wednesday, 11 July 2018

किसका संग करूँ ? वह परम पुराण पुरुष ही मेरा शाश्वत् मित्र है .....

किसका संग करूँ ? वह परम पुराण पुरुष ही मेरा शाश्वत् मित्र है .....
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संग मैं उसी का करूँ जो यथावत् मुझे स्वीकार कर ले, अन्य कोई नहीं| मुझेे यथावत् स्वीकार कर सकने वाला मेरा एकमात्र संगी-साथी वह पुराण पुरुष परमात्मा ही हो सकता है जिस के बारे में गीता में भगवान कहते हैं .....
"पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया | यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ||८:२२||"
अर्थात् .... हे पार्थ सम्पूर्ण प्राणी जिसके अन्तर्गत हैं और जिससे यह सम्पूर्ण संसार व्याप्त है वह परम पुरुष परमात्मा अनन्यभक्ति से प्राप्त होने योग्य है|
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वह मेरे इस शरीर रूपी पुर में शयन कर रहा है, और सर्वत्र पूर्णतः समान रूप से व्याप्त भी है, इसलिए वह पुरुष कहलाता है| पुराण का अर्थ है ... शाश्वत/सनातन/प्राचीन| वह परम पुराण पुरुष ही मेरा सच्चा मित्र है, अन्य कोई नहीं| वह अनन्य भक्ति द्वारा ही प्राप्त होता है| उस अनन्य भक्ति को भी मेरे लिए वह स्वयं ही कर रहा है| अतः बलिहारी जाऊँ मैं उस पर, उस से श्रेष्ठतर मित्र होना असंभव है|
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त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् |
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ||११:३८||
अर्थात् ..... आप ही आदि देव और पुराण पुरुष हैं तथा आप ही इस संसारके परम आश्रय हैं| आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परम धाम हैं| हे अनन्त रूप आपसे ही सम्पूर्ण संसार व्याप्त है|
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विवेक-चूडामणि का १३१ वाँ श्लोक कहता है ..... "एषोऽन्तरात्मा पुरुषः पुराणो निरन्तराखण्ड-सुखानुभूति | सदा एकरूपः प्रतिबोधमात्र येनइषिताः वाक्असवः चरन्ति ||"
अन्य भी अनेक ग्रंथों में पुराण पुरुष शब्द का अनेक बार प्रयोग परमात्मा के लिए हुआ है| वह पुराण पुरुष परमात्मा ही मेरा शाश्वत मित्र है| मैं उसमें नाचूँ या गाऊँ ? किसी को क्या ? मैं तो उसमें मग्न हूँ| मेरे लिये एकमात्र साथ उसी का है| उसके अतिरिक्त अन्य कोई है ही नहीं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ जुलाई २०१८
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पुनश्च्च :- ऊपर बताया हुआ गीता के ८ वें अध्याय का २२ वां श्लोक यह भी बताता है कि ईश्वर की प्राप्ति अनन्य भक्ति से ही संभव है| अनन्य का अर्थ वेदान्तिक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा| ध्यान में साधक यह भाव रखता है कि मेरे सिवा अन्य कोई भी नहीं है|

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