Thursday 22 March 2018

मगन भया मन मेरा .....

मगन भया मन मेरा .....
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भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी की ध्वनी से मधुर और कुछ भी नहीं है| यह निरंतर हर मनुष्य में बज रही है| बस सुनने वाला प्रेमी चाहिए| जिस धरातल पर यह ध्वनी बजती है वह मनुष्य के भौतिक, प्राणिक और मानसिक चैतन्य से परे है| यह एक वास्तविकता है जिसकी महिमा में हमारे शास्त्र भरे पड़े हैं| सूक्ष्म देहस्थ मेरुदंड व मस्तिष्क में स्थित सुषुम्ना नाड़ी वह बांसुरी है जिसमें प्रभुजी निरंतर प्राण फूँक रहे हैं, जिसकी प्रतिक्रिया से साँसें चल रही हैं और ह्रदय धडक रहा है| सातों चक्र ही उस बांसुरी के छिद्र हैं| सहस्रार से तो साक्षात प्रभुजी स्वयं इस बांसुरी को बजाकर पूरी सृष्टि में प्राण भर रहे हैं| मानव देह में त्रिभंग मुद्रा में उन बिहारी जी की छवि अनुपम है| जीवन और मृत्यु का वहाँ कोई महत्व नहीं है| जहाँ वे हैं वहाँ अन्य कुछ भी नहीं हो सकता| वे ही सब कुछ हैं और सब कुछ उन्हीं में है|
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प्रणव ध्वनी उनकी बांसुरी की आवाज है| एक मधुमक्खी मधु चखने के पश्चात पुष्पों की गंध से और आकर्षित नहीं होती वैसे ही उस बांसुरी की ध्वनी सुनने के पश्चात वासनओं का आकर्षण क्षीण होने लगता है| उस ध्वनी को निरंतर सुनने का प्रयास हम करते रहें| प्रयास छोड़ने पर पतन ही पतन है|
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आगे का मार्ग प्रभुजी स्वयं दिखाते हैं, शर्त यही है कि हम उन से प्रेम करें| भगवान के पास सब कुछ है पर एक चीज का उनके पास भी निरंतर अभाव है जिसके लिए वे भी तरसते हैं, और वह है हमारा प्रेम| जिसने हमें सब कुछ दिया, क्या हम उन्हें अपना प्रेम नहीं दे सकते?

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सब का कल्याण हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ मार्च २०१४

1 comment:

  1. तुम मेरे ह्रदय में ही रहोगे !!! ह्रदय का द्वार पूरा खुला है और सदा खुला ही रहेगा, पर तुम अब बाहर नहीं जाओगे ! जा भी कैसे सकते हो ? ह्रदय की चेतना तो सारे विस्तृत है | ह्रदय से बाहर कुछ है ही नहीं |

    तुम स्वयं मेरा ह्रदय बन गए हो | तुम्हारी तरह मैं भी मुक्त हूँ | तुम्हारी अनंतता मेरी भी अनंतता है, और तुम्हारा विस्तार मेरा ही विस्तार है |

    तुम और मैं एक हैं और सदा एक ही रहेंगे | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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