Thursday, 22 March 2018

संसार में सुख की खोज मनुष्य के सब दुःखों का कारण है .....

संसार में सुख की खोज मनुष्य के सब दुःखों का कारण है .....
.
मनुष्य संसार में सुख ढूंढ़ता है पर निराशा ही हाथ लगती है| यह निराशा और सुख की अपेक्षा सदा दुःखदायी है| परमात्मा से बिना किसी शर्त से किये गए प्रेम में ही आनंद है| परमात्मा से प्रेम ही आनंददायी है| उस आनंद की एक झलक पाने के पश्चात ही संसार की असारता का बोध होता है| हमारी सबसे बड़ी सम्पत्ति भगवान के श्री-चरणों में आश्रय पाना है|
.
जो योग-मार्ग के पथिक हैं उनके लिए सहस्त्रार ही गुरुचरण है| आज्ञाचक्र का भेदन और सहस्त्रार में स्थिति बिना गुरुकृपा के नहीं होती| जब चेतना उत्तर-सुषुम्ना यानि आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य विचरण करने लगे तब समझ लेना चाहिए कि गुरु महाराज की परम कृपा हो रही है| जब स्वाभाविक और सहज रूप से सहस्त्रार में व उससे ऊपर की ज्योतिर्मय विराटता में ध्यान होने लगे तब समझ लेना चाहिए कि श्रीगुरुचरणों में अर्थात प्रभुचरणों में आश्रय प्राप्त हो गया है| तब भूल से भी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए| एक योगी की चेतना वैसे भी अनाहत चक्र से ऊपर ही रहती है| एकमात्र मार्ग है .... परम प्रेम, परम प्रेम और परम प्रेम | इसके अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है| भगवान से खूब प्रेम करो, प्रेम करो और खूब प्रेम करो|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ मार्च २०१४

No comments:

Post a Comment