Thursday 22 March 2018

जीवन में हम आनंदमय रहें, प्रेम ही आनंद का द्वार है .....

जीवन में हम आनंदमय रहें, प्रेम ही आनंद का द्वार है .....
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हम प्रसन्न रहें, प्रेममय रहें, प्रेम सब में बाँटें, यह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| जब हम जीवन की संपूर्णता व विराटता को त्याग कर लघुता को अपनाते हैं तो निश्चित रूप से विफल होते हैं| दूसरों का जीवन हम क्यों जीते हैं ? दूसरों के शब्दों के सहारे हम क्यों जीते हैं ? पुस्तकों और दूसरों के शब्दों में वह कभी नहीं मिलेगा जो हम ढूँढ रहे हैं क्योंकि अपने ह्रदय की पुस्तक में वह सब लिखा है| कुछ बनने की कामना से कुछ नहीं बनेंगे क्योंकि जो हम बनना चाहते हैं, वह तो हम पहले से ही हैं| कुछ पाने की खोज में भटकते रहेंगे, कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि जो हम पाना चाहते हैं वह तो हम स्वयं ही हैं|
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भाई रे घर ही में घर पाया ।
सहज समाइ रह्यो ता मांही, सतगुरु खोज बताया ॥ टेक ॥
ता घर काज सबै फिर आया, आपै आप लखाया ।
खोल कपाट महल के दीन्हें, स्थिर सुस्थान दिखाया ॥ १ ॥
भय औ भेद भरम सब भागा, साच सोई मन लाया ।
पिंड परे जहाँ जिव जावै, ता में सहज समाया ॥ २ ॥
निश्चल सदा चलै नहिं कबहूँ , देख्या सब में सोई ।
ताही सौं मेरा मन लागा, और न दूजा कोई ॥ ३ ॥
आदि अनन्त सोई घर पाया, अब मन अनत न जाई ।
दादू एक रंगै रंग लागा, तामें रह्या समाई ॥ ४ ॥
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ मार्च २०१४

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