Thursday, 1 June 2017

हमारे समाज की गति क्यों क्षीण हो रही है ?

हमारे समाज की गति क्यों क्षीण हो रही है ?
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सन उन्नीस सौ पचास, साठ, और सत्तर के दशकों में व सन १९८० के दशक तक भारत की राजनीति में अच्छे विचारक और वक्ता हुआ करते थे| बड़ी अच्छी अच्छी साहित्यिक और ज्ञानवर्धक पत्रिकाएँ निकलती थीं| समाचारपत्रों का आकार आज से डेढ़ गुणा और पृष्ठों की संख्या आज से दुगुणी होती थी| बड़े अच्छे लेख आते थे| वाचनालयों में समाचार पत्र और पत्रिकाएँ पढ़ने के लिए खूब भीड़ रहती थी| युवा विद्यार्थीगण पुस्तकालयों से अच्छी अच्छी साहित्यिक और ज्ञानवर्धक पुस्तकें निकलवा कर पढ़ते थे| प्रातःकाल में घूमने, दौड़ने और खूब व्यायाम करने का भी युवाओं में शौक था| शाम के समय भी खेलने और मित्रों से मिलने जुलने का समय होता था| समाज में एक गति थी| अब वह गति नहीं रही है| अब इतनी गलाकाट प्रतियोगिता हो गयी है कि विद्यार्थियों को ट्यूशन और कोचिंग से ही अवकाश नहीं मिलता| महिलाओं में भी तब बहुत मेलजोल, सामाजिक एकता और पारस्परिक प्रेमभाव था| अब तो मुश्किल से ही आपस में मिलना जुलना होता है|
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अब आज के युवा वर्ग की न तो अच्छे साहित्य में रूचि है और न ही धर्म, समाज और राष्ट्र की चेतना में| कोई अच्छे मार्गदर्शक भी नहीं दिखाई दे रहे हैं| बहुत अधिक अपराध बढ़ रहे हैं| लोग स्वार्थी होते जा रहे हैं| कैसे हम अपनी संतानों को चरित्रवान बनाएँगे? कैसे हम राष्ट्रीय चरित्र का विकास करेंगे? इस की चिंता करने वाले भी बहुत कम लोग हैं|
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राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह भावना होना चाहिये कि मैं इस राष्ट्र का एक बहुत महत्वपूर्ण घटक हूँ| हम में आत्मविश्वास होना चाहिए| समाज की परिस्थितियों को देखकर निराशा होती है| आज का नेतृत्व भी व्यवसायिक हो गया है| ऐसे नेताओं की हमें आवश्यकता है जो देश को आध्यात्मिक, सामाजिक और राजनीतिक नेतृत्व दे सके|
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पर मैं निराश नहीं हूँ| भारत में बहुत अच्छे अच्छे लोग हैं जो हर क्षेत्र में बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं| हमारा समाज फिर से गति पकड़ेगा और उन्नति के शिखर पर होगा| इस और से मैं पूर्णतः आश्वस्त हूँ|
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कमियाँ तो मुझे जो दिखाई दे रही हैं वे सब आध्यात्मिक स्तर पर मेरी ही कमियाँ हैं| मेरा निजी पतन ही बाहरी जगत का पतन है| मैं स्वयं की कमियों को आध्यात्मिक स्तर पर दूर करूँगा तभी बाहरी जगत की कमियाँ दूर होंगी| मेरी स्वयं की आध्यात्मिक गति तीब्र होगी तभी समाज और राष्ट्र की भी होगी| दोष मेरा ही है जिसे मुझे ही दूर करना होगा|
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ॐ ॐ ॐ ||

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