Thursday 1 June 2017

पूर्णता कहाँ नहीं है ? .....


पूर्णता कहाँ नहीं है ? ......

सारे पूर्णता ही पूर्णता है| सिर्फ हमारी चेतना और समझ में ही अपूर्णता है| परमात्मा की सृष्टि में कहीं भी अपूर्णता तो हो ही नहीं सकती| भगवान ने हमें अपने निज जीवन को सृजन करने की पूरी छूट दे रखी है, जो हमारी ही सृष्टि है| अपूर्णता है तो वह हमारी स्वयं की सृष्टि में ही है| पूरे जीवन भर हम अपने से बाहर पूर्णता ढूँढते रहते हैं, पर पूर्णता का कहीं आभास तक भी नहीं मिलता| पूर्णता कहीं मिलेगी तो अंतर में ही मिलेगी, ऐसा मुझे लगता है|
इस सृष्टि में कुछ भी निःशुल्क नहीं है, हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है| पूर्णता को प्राप्त करने की कीमत भी चुकानी ही पड़ेगी| मुझे लगता है कि पूर्णता की कीमत है .... भगवान की भक्ति और सम्पूर्ण समर्पण| भगवान की भक्ति और समर्पण में ही पूर्णता है|
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ॐ ॐ ॐ ||

4 comments:

  1. "कृत्यकृत्य" ही सदा सुखी है| "सत्" से जुड़ कर कैसी अपेक्षा?

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  2. सारी सृष्टि हमारा आत्म-रूप है|
    राग-द्वेष-भय से मुक्त हुए बिना सत्य का बोध नहीं होता|

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  3. आहार शुद्धि सर्वप्रथम आवश्यक है| सिर्फ भोजन ही नहीं, सभी इन्द्रियों के विषय भोग आहार हैं|

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  4. सिद्धि की अपेक्षा एक अहंकार है जो दुःखदायी हो सकता है |

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