Friday, 2 June 2017

हमारे पतन का एक कारण हमारा आसुरी आहार है ......

हमारे पतन का एक कारण हमारा आसुरी आहार है ......
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गीता के अनुसार हम जो कुछ भी खाते हैं वह हम नहीं खाते हैं बल्कि अपनी देह में वैश्वानर अग्नि देव के रूप में स्थित परमात्मा को समर्पित करते हैं| उस भोजन से पूरी सृष्टि की तृप्ति होती है| जहाँ हम अपने स्वयं के लिए खाते हैं वहाँ हम पाप का भक्षण करते हैं|
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आजकल आसुरी खानपान का बहुत अधिक प्रचलन हो गया है| जिस खानपान से मन दूषित होता है वह आसुरी आहार है| लोग जूठा भोजन खाने खिलाने में भी परहेज नहीं करते| जूठा भोजन भी आसुरी हो जाता है| किसी का भी जूठा नहीं खाना चाहिए| मनु महाराज ने मनु स्मृति में उच्छिष्ट भोजन का निषेध किया है| भोजन पकाना एक पाकयज्ञ है जिसकी विधि का गृह्यसूत्रों में वर्णन है| रसोई के चूल्हे और बर्तनों की पवित्रता की हमें रक्षा करनी चाहिए| भोजन बनाने वाले के कैसे भाव हैं इसका भी प्रभाव खाने वाले पर पड़ता है|
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सिर्फ भोजन ही हमारा आहार नहीं है| जो हम सोचते हैं, देखते हैं, सूंघते हैं, सुनते हैं, और स्पर्श करते हैं .... वह भी हमारी इन्द्रियों द्वारा किया गया आहार ही है| हम अश्लीलता को सोचते है, देखते हैं और सुनते हैं तो यह अश्लीलता का आहार है| इन्द्रियों द्वारा लिया गया आहार भी हमारे मन को बनाता है|
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अतः आहार शुद्धि का ध्यान रखना एक आध्यात्मिक साधक का महत्वपूर्ण कर्त्तव्य है| आसुरी आहार के कारण ही हमारा मन दूषित हो जाता है| फिर हम पर देवताओं की कृपा नहीं होती और हमारा पतन हो जाता है|
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ॐ ॐ ॐ ||

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