Sunday, 7 May 2017

प्रणव नाद से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है, आत्मानुसंधान से बड़ा कोई तंत्र नहीं है, और अपनी निज आत्मा (आत्म-तत्व) कि पूजा से बड़ी कोई पूजा नहीं है .....

प्रणव नाद से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है, आत्मानुसंधान से बड़ा कोई तंत्र नहीं है, और अपनी निज आत्मा (आत्म-तत्व) कि पूजा से बड़ी कोई पूजा नहीं है|

"नास्ति नादात परो मन्त्रो न देव: स्वात्मन: पर:
नानु सन्धात परा पूजा नहि तृप्ते: परम सुखं"
There is no mantra superior to Nada and there is no other deity superior to Atma. No worship is superior to the worship of soul.
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किसी भी साधना से लाभ उसका अभ्यास करने से है, उसके बारे में जानने मात्र से या उसकी विवेचना से नहीं है| आपके सामने मिठाई पडी है तो उसका आनंद उस को चखने और खाने में है, न कि उसकी विवेचना में| भगवान का लाभ उसकी भक्ति यानि उससे प्रेम करने में है न कि उसके बारे में की गयी बौद्धिक चर्चा में|
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प्रभु के प्रति प्रेम, समर्पण का भाव और भावों में शुद्धता हो तो कोई हानि होने की सम्भावना नहीं है| जब शिष्यत्व की पात्रता हो जाती है तब गुरु का पदार्पण भी जीवन में हो जाता है|
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मन्त्रयोग संहिता में आठ प्रमुख बीज मन्त्रों का उल्लेख है जो शब्दब्रह्म ओंकार की ही अभिव्यक्तियाँ हैं| लिंग पुराण के अनुसार ओंकार का प्लुत रूप नाद है| मन्त्र में पूर्णता "ह्रस्व", "दीर्घ" और "प्लुत" स्वरों के ज्ञान से ही आती है जिसके साथ पूरक मन्त्र की सहायता से विभिन्न सुप्त शक्तियों का जागरण होता है| वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक नाद, बिंदु और मुद्राओं व साधन क्रम का ज्ञान सद्गुरु ही करा सकता है|
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स्थिर तन्मयता (Stable total identification) ही नादानुसंधान है|
बीजमंत्रों, अजपा-जप, षटचक्र साधना, योनी मुद्रा में ज्योति दर्शन, और नाद व ज्योति तन्मयता, खेचरी मुद्रा, साधन क्रम आदि का ज्ञान गुरु की कृपा से ही हो सकता है| साधना में सफलता भी गुरु कृपा से ही होती है और ईश्वर लाभ भी गुरु कृपा से होता है|
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हम सब जीव से शिव बनें और परमात्मा में हमारी जागृति हो|
ॐ नमः शिवाय| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
फाल्गुन शु.३, वि..स.२०७२, 11March2016

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