Thursday 9 February 2017

गुरुचरणों पर ध्यान .......

गुरुचरणों पर ध्यान .......
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आज्ञाचक्र ही मेरा ह्रदय है| सहस्त्रार ही मेरे गुरु महाराज के चरण कमल हैं, जिनका ध्यान ही मेरे लिए गुरु चरणों में आश्रय है| सहस्त्रार से ऊपर की अनंतता और विस्तार ही मेरे लिए परमशिव परमब्रह्म सच्चिदानंदं परमात्मा है| वे ही मेरे सद्गुरु हैं जो सब नामरूपों से परे हैं| अनाहत नाद ही कूटस्थ अक्षर गुरु वाक्य है| कूटस्थ ज्योति ही उनका साकार रूप है| यही मेरी उपासना और साधना है| कूटस्थ चैतन्य ही मेरा जीवन है|
हे गुरु महाराज, कभी अपने ध्यान से विमुख मत करो| जीवन में, मृत्यु में, सदा मैं निरंतर आपका ही रहूँ| यह देह रहे या न रहे, पर मैं सदा आपका ही रहूँगा|
ॐ ॐ ॐ | ॐ ॐ ॐ | ॐ ॐ ॐ ||
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(कूटस्थ चैतन्य ........... साधक जब शिवनेत्र होकर यानि दोनों आँखों की पुतलियों को बिना तनाव के नासिका मूल के समीप लाकर, भ्रूमध्य में प्रणव यानि ॐकार से लिपटी दिव्य ज्योतिर्मय सर्वव्यापी आत्मा का चिंतन करता है, तब उसके ध्यान में विद्युत् की आभा के समान देदीप्यमान ब्रह्मज्योति प्रकट होती है| उस ब्रह्मज्योति और उसके साथ सुनाई देने वाले प्रणव नाद में लय होना 'कूटस्थ चैतन्य' है| वह ज्योति और नाद ही कूटस्थ ब्रह्म है|)
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1 comment:

  1. गुरु चरणों में ध्यान लगते ही मैं स्तब्ध हो जाता हूँ| आँखों से आंसुओं की धारा बहने लगती है| सारे विचार लुप्त हो जाते हैं| आत्माराम की सी स्थिति हो जाती है|

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