Thursday 9 February 2017

माया और भक्ति ....

माया और भक्ति ....
------------------
माया और भक्ति ये भगवान की दो शक्तियाँ हैं जो हम पर निरंतर अपना कार्य कर रही हैं| भक्ति हमें भगवान की ओर आकर्षित करती है, माया हमें भगवान से दूर करती है| यह प्रभु की एक लीला ही है| भक्ति परम प्रेम है, माया आवरण और विक्षेप है|
.
राग-द्वेष, अहंकार, हिंसा, संसार में सुखों की लालसा, वासनाएँ, प्रमाद, आलस्य, दीर्घसूत्रता आदि ये सब माया के ही अस्त्र हैं| आजकल लोगों में इतना अधिक मानसिक तनाव है जिससे तरह तरह की बीमारियाँ जैसे हृदयाघात, मधुमेह और अवसाद आदि हो रहे हैं| कितनी भी दवाइयाँ लो पर मानसिक तनाव के कारण उनका कुछ प्रभाव ही नहीं पड़ता| सब लोग कहते हैं तनाव मुक्त जीवन जीओ पर तनाव है कि दूर होता ही नहीं है| तनाव दूर करने के लिए लोग नशा करते हैं, नींद की गोलियाँ लेते हैं, पर तनाव फिर भी पीछा नहीं छोड़ता|
.
इसका सबसे बड़ा निदान है .... भगवान की भक्ति|
हम अपना हर कार्य भगवान की प्रसन्नता के लिए करें, धीरे धीरे भगवान को ही कर्ता बनाएँ और दुःख-सुख जो भी मिलता है उसे प्रसाद रूप में ग्रहण कर के संतुष्ट रहें| परमात्मा के प्रति जितना अधिक प्रेम हमारे हृदय में होगा, उसी अनुपात में उससे कई गुणा अधिक परमात्मा की कृपा हमारे ऊपर होगी|
सार की बात एक ही है कि सभी भवरोगों का एक ही उपचार है ....भगवान की भक्ति| फिर आगे के सब द्वार अपने आप ही खुलने लगते हैं, सारे दीप अपने आप ही जल उठते हैं|


ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment