Friday, 17 February 2017

हम सदा परमात्मा की गोद में हैं .....

हम सदा परमात्मा की गोद में हैं| वास्तव में हम हैं ही नहीं| सर्वत्र वे ही हैं|
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रात्रि में परमात्मा का ध्यान कर निश्चिन्त होकर जगन्माता की गोद में सो जाएँ| सिर के नीचे तकिया नहीं जगन्माता का वरद हस्त ही हो| प्रातःकाल जगन्माता की गोद में ही उठें और वहीं बैठकर प्रभुप्रेम में ध्यानस्थ हो जाएँ|
उससे अधिक प्रिय और सुन्दर अनुभूति और क्या हो सकती है जब हम पाते हैं कि सृष्टिकर्ता परमात्मा स्वयं जगन्माता के रूप में हमें प्यार कर रहे हैं, ठाकुर जी ही हमें प्रेम करने लगे हैं| जब चारों ओर हम परमात्मा को पाते हैं, और परमात्मा ही हमारे प्रेम में पड़ गए हैं तो हमें और क्या चाहिए ?

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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