ॐ ॐ ॐ || हे साक्षात परमब्रह्म सच्चिदानंद,
आपके ध्यान में स्थिति ही मेरा जीवन, और आपके ध्यान से विमुखता ही मेरी मृत्यु है| किसी भी परिस्थिति में मुझे अपने ध्यान से विमुख मत होने दो| मैं आपकी शरणागत हूँ| आप मेरी रक्षा करें| विधाता को भी शक्ति आप ही देते हैं| आपके होते हुए विधाता कैसे मुझे आपसे दूर कर सकता है? मुझ निरीह अकिंचन में कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है, आप ही मेरी शक्ति हो| स्वयं को मुझमें व्यक्त करो| इस माया के आवरण और सभी विक्षेपों का अंत करो| ॐ ॐ ॐ ||
आपके ध्यान में स्थिति ही मेरा जीवन, और आपके ध्यान से विमुखता ही मेरी मृत्यु है| किसी भी परिस्थिति में मुझे अपने ध्यान से विमुख मत होने दो| मैं आपकी शरणागत हूँ| आप मेरी रक्षा करें| विधाता को भी शक्ति आप ही देते हैं| आपके होते हुए विधाता कैसे मुझे आपसे दूर कर सकता है? मुझ निरीह अकिंचन में कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है, आप ही मेरी शक्ति हो| स्वयं को मुझमें व्यक्त करो| इस माया के आवरण और सभी विक्षेपों का अंत करो| ॐ ॐ ॐ ||
आत्म साक्षात्कार यानि आत्मज्ञान हमारा परम धर्म है| निरंतर ब्रह्मचिंतन, मन्त्र जप, प्रभुप्रेम और ध्यान हमारा स्वभाव ही बन जाए तो हमारा कार्य बहुत ही आसान हो जाता है| इस स्वभाव में स्थाई स्थिति हमारे लिए अति आवश्यक है| हर क्षण सद्ग गुरु प्रदत्त साधना ही करें| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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