Tuesday, 17 January 2017

निर्बल के बल राम, निर्धन के धन राम, और निराश्रय के आश्रय राम हैं ...

निर्बल के बल राम, निर्धन के धन राम, और निराश्रय के आश्रय राम हैं, फिर और क्या चाहिए? कुछ भी नहीं ....
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मेरे द्वारा परमात्मा का ध्यान सिर्फ इसीलिए होता है कि मुझे और कुछ भी आता-जाता नहीं है| कोई पूजा-पाठ, जप-तप, कोई मंत्र-स्तुति ...... कुछ भी मुझे नहीं आती| न तो मुझे श्रुतियों का और न आगम शास्त्रों का कोई ज्ञान है| इन्हें समझने की बुद्धि भी नहीं है|
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भगवान ने कूट कूट कर अपना परम प्रेम मुझे दिया है, और अन्य कुछ भी मेरे पास नहीं है| यही मेरी एकमात्र संपत्ति है| न तो मुझे किसी से कुछ चाहिए और न मेरे पास कुछ देने के लिए है|
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किसी भी देवी-देवता और ग्रह-नक्षत्र, में मेरी कोई आस्था नहीं है, क्योंकि इन सब को ऊर्जा और शक्ति परमात्मा से ही मिलती है| इनकी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है|
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जो कुछ भी निज पुरुषार्थ से अर्जित किया जा सकता है, उसकी मुझे अब कोई चाह नहीं है| मुझे वो ही चाहिए जो सिर्फ और सिर्फ परमात्मा की कृपा से ही प्राप्त होता है|
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अतः उनकी कृपा ही मेरा आश्रय है| मुझे न तो उनकी विभूतियाँ चाहिए और न कुछ और| साक्षात सच्चिदानंद परमब्रह्म परमात्मा से कम कुछ भी नहीं चाहिए| यह पृथकता का बोध और माया का आवरण समाप्त हो| ॐ ॐ ॐ ||

ॐ ॐ ॐ ||

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