सद् आचरण में तत्परता .....
---------------------------
किसी भी मनुष्य के लिए सर्वाधिक मत्वपूर्ण है ... उसका "आचरण" यानी उसका आचार-विचार कैसा है| हमारी सनातन वैदिक परम्परा में सभी के लिए एक अभेद दृष्टि है, और वह है ... सद आचरण में तत्परता| चाहे कोई विरक्त हो, चाहे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र, सभी का आचरण शुद्ध होना चाहिए| यदि हमारा आचरण शुद्ध नहीं है तो सर्वत्र हमारा तिरस्कार होगा, सभी हमारी उपेक्षा और अनादर करेंगे| कोई भी हमारी बात को गंभीरता से नहीं लेगा|
.
रण का आध्यात्मिक अर्थ है ... जिसमें हमारी आत्मा रमण कर सके| उसका निज जीवन में आविर्भाव यानि आगमन निरंतर रहे| हम शाश्वत आत्मा है और सिर्फ परमात्मा में ही रमण कर सकते हैं जैसे महासागर में जल की एक बूँद| हम परमात्मा में निरंतर रमण करते रहें ... यह सद् आचरण है जिसके लिए हमें सदा तत्पर रहना चाहिए|
.
अब विचार करते हैं कि सद् आचरण को हम निज जीवन में कैसे अवतरित कर सकते हैं .....
.
(१) हमारे जीवन में कुटिलता नहीं हो ....
जो हम कहते हैं, जो हम दूसरों को सिखाना चाहते हैं, या जो दूसरों से अपेक्षा करते हैं, उस को सर्वप्रथम अपने जीवन में अवतरित करना होगा| उपदेश देने से पहले हम स्वयं उसका पालन करें, हमारी कथनी और करनी में कोई अंतर न हो| हमारा कोई सम्मान नहीं करता, हमारी सब उपेक्षा करते हैं, कोई हमें गंभीरता से नहीं लेता, .... इसका एकमात्र कारण है कि हम कहते कुछ और हैं और करते हैं कुछ और| जो हमारे आचरण में नहीं है उसका उपदेश कभी भी प्रभावी नहीं होगा| आजकल बच्चे अपने से बड़ों का और अध्यापकों का सम्मान इसीलिए नहीं करते कि बड़े-बूढ़े और अध्यापक कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं| इसीलिए आजकल राजनेताओं का कहीं कोई सम्मान नहीं है क्योंकि वे कुटिल हैं| उपदेश उसी का प्रभावी होगा जिसके जीवन में कुटिलता नहीं है|
.
(२) हम सत्यवादी हों ....
परमात्मा सत्य है, इसीलिए हम उन्हें भगवान सत्यनारायण कहते हैं| हमारे जीवन में जितना झूठ-कपट है, उतना ही हम परमात्मा से दूर हैं| झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से किया हुआ कोई भी मन्त्र जप, पाठ और प्रार्थना प्रभावी नहीं होगी| असत्यवादी कभी परमात्मा के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता| सिर्फ धर्मरक्षा और प्राणरक्षा के लिए कहा गया झूठ तो माफ़ हो सकता है, अन्यथा नहीं| झूठे व्यक्ति का कहीं भी कोई सम्मान नहीं होता क्योंकि वह नर्कपथगामी है|
.
(३) सबके प्रति प्रेम हमारे ह्रदय में हो ....
सबके प्रति प्रेम हमारे ह्रदय में तभी होगा जब हमारे ह्रदय में परमात्मा के प्रति प्रेम होगा| तभी हम जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ कर पायेंगे, अन्यथा कुछ भी नहीं| तब सारे गुण स्वतः ही हमारे जीवन में आ जायेंगे|
.
(४) हमारे विचार और संकल्प सदा शुभ हों ....
यह सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि जैसा हम सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं| हमारे विचारों और संकल्प का प्रभाव सभी पर पड़ता है, अतः अपने विचारों पर सदा दृष्टी रखनी चाहिए| कुविचार को तुरंत त्याग दें, और सुविचार पर दृढ़ रहें|
दूसरों से कोई अपेक्षा न रखें पर हर परिस्थिति में अपना सर्वश्रेष्ठ करें|
.
उपरोक्त चारों बातों के प्रति तत्परता ही हमारे आचरण को सद् आचरण बना सकती है| इनके प्रति सदा तत्पर रहें|
आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं, अतः आप सब को सादर नमन|
ॐ तत्सत ! ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
---------------------------
किसी भी मनुष्य के लिए सर्वाधिक मत्वपूर्ण है ... उसका "आचरण" यानी उसका आचार-विचार कैसा है| हमारी सनातन वैदिक परम्परा में सभी के लिए एक अभेद दृष्टि है, और वह है ... सद आचरण में तत्परता| चाहे कोई विरक्त हो, चाहे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र, सभी का आचरण शुद्ध होना चाहिए| यदि हमारा आचरण शुद्ध नहीं है तो सर्वत्र हमारा तिरस्कार होगा, सभी हमारी उपेक्षा और अनादर करेंगे| कोई भी हमारी बात को गंभीरता से नहीं लेगा|
.
रण का आध्यात्मिक अर्थ है ... जिसमें हमारी आत्मा रमण कर सके| उसका निज जीवन में आविर्भाव यानि आगमन निरंतर रहे| हम शाश्वत आत्मा है और सिर्फ परमात्मा में ही रमण कर सकते हैं जैसे महासागर में जल की एक बूँद| हम परमात्मा में निरंतर रमण करते रहें ... यह सद् आचरण है जिसके लिए हमें सदा तत्पर रहना चाहिए|
.
अब विचार करते हैं कि सद् आचरण को हम निज जीवन में कैसे अवतरित कर सकते हैं .....
.
(१) हमारे जीवन में कुटिलता नहीं हो ....
जो हम कहते हैं, जो हम दूसरों को सिखाना चाहते हैं, या जो दूसरों से अपेक्षा करते हैं, उस को सर्वप्रथम अपने जीवन में अवतरित करना होगा| उपदेश देने से पहले हम स्वयं उसका पालन करें, हमारी कथनी और करनी में कोई अंतर न हो| हमारा कोई सम्मान नहीं करता, हमारी सब उपेक्षा करते हैं, कोई हमें गंभीरता से नहीं लेता, .... इसका एकमात्र कारण है कि हम कहते कुछ और हैं और करते हैं कुछ और| जो हमारे आचरण में नहीं है उसका उपदेश कभी भी प्रभावी नहीं होगा| आजकल बच्चे अपने से बड़ों का और अध्यापकों का सम्मान इसीलिए नहीं करते कि बड़े-बूढ़े और अध्यापक कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं| इसीलिए आजकल राजनेताओं का कहीं कोई सम्मान नहीं है क्योंकि वे कुटिल हैं| उपदेश उसी का प्रभावी होगा जिसके जीवन में कुटिलता नहीं है|
.
(२) हम सत्यवादी हों ....
परमात्मा सत्य है, इसीलिए हम उन्हें भगवान सत्यनारायण कहते हैं| हमारे जीवन में जितना झूठ-कपट है, उतना ही हम परमात्मा से दूर हैं| झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से किया हुआ कोई भी मन्त्र जप, पाठ और प्रार्थना प्रभावी नहीं होगी| असत्यवादी कभी परमात्मा के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता| सिर्फ धर्मरक्षा और प्राणरक्षा के लिए कहा गया झूठ तो माफ़ हो सकता है, अन्यथा नहीं| झूठे व्यक्ति का कहीं भी कोई सम्मान नहीं होता क्योंकि वह नर्कपथगामी है|
.
(३) सबके प्रति प्रेम हमारे ह्रदय में हो ....
सबके प्रति प्रेम हमारे ह्रदय में तभी होगा जब हमारे ह्रदय में परमात्मा के प्रति प्रेम होगा| तभी हम जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ कर पायेंगे, अन्यथा कुछ भी नहीं| तब सारे गुण स्वतः ही हमारे जीवन में आ जायेंगे|
.
(४) हमारे विचार और संकल्प सदा शुभ हों ....
यह सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि जैसा हम सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं| हमारे विचारों और संकल्प का प्रभाव सभी पर पड़ता है, अतः अपने विचारों पर सदा दृष्टी रखनी चाहिए| कुविचार को तुरंत त्याग दें, और सुविचार पर दृढ़ रहें|
दूसरों से कोई अपेक्षा न रखें पर हर परिस्थिति में अपना सर्वश्रेष्ठ करें|
.
उपरोक्त चारों बातों के प्रति तत्परता ही हमारे आचरण को सद् आचरण बना सकती है| इनके प्रति सदा तत्पर रहें|
आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं, अतः आप सब को सादर नमन|
ॐ तत्सत ! ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
No comments:
Post a Comment