Thursday 12 January 2017

किसी भी कैसी भी परिस्थिति में हमें निज विवेक से अपना सर्वश्रेष्ठ विचार और सर्वश्रेष्ठ कर्म करना चाहिए ....

किसी भी कैसी भी परिस्थिति में हमें निज विवेक से अपना सर्वश्रेष्ठ विचार और सर्वश्रेष्ठ कर्म करना चाहिए .....
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यह सृष्टि और इस सृष्टि का समस्त घटनाक्रम हमारे ही भावों व विचारों से निर्मित है और उसी के अनुसार चल रहा है, क्योंकि हम सृष्टिकर्ता के अंश हैं| जब हमारे वश में कोई बात नहीं होती तब हम अपनी ही कमी को ढकने के लिए सृष्टिकर्ता को दोष दे देते हैं| विवशतावश कहने के लिए हम यही कहते हैं कि जैसी हरि की इच्छा| पर एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि हमारा दृढ़ संकल्प इस सृष्टि और उसके घटनाक्रम को बदल सकता है| हमें किसी भी परिस्थिति में निज विवेक से अपना सर्वश्रेष्ठ कर्म करना चाहिए| जिसने यह सृष्टि बनाई है वह अपनी सृष्टि को चलाने में सक्षम है, उसे हमारी सलाह की आवश्यकता नहीं है, पर उसने हमें हमारा सर्वश्रेष्ठ कर्म करने का अधिकार दे रखा है|
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तेरे भावे जो करे भलो-बुरो संसार | नारायण तू बैठ के अपनो भुवन बुहार ||
कई बार बड़ी पीड़ा होती है दुनिया को देख कर| मन में विचार भी अनेक आते हैं, पर सारे दुःख-सुख, ताप, पीड़ाएँ, यंत्रणाएं और आनंद सब स्वीकार हैं, क्योंकि ये हमारे ही कर्मों के फल हैं| कहने को तो हमें यही कहना चाहिए कि कर्ता भी वो ही है तो भोक्ता भी वो ही है, उसकी इच्छा पूर्ण हो| Let Thy will be done.
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय || ॐ ॐ ॐ ||

3 comments:

  1. जिस के हृदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर प्रेम भरा पड़ा है वह संसार में सबसे अधिक सुन्दर व्यक्ति है, चाहे उस की भौतिक शक्ल-सूरत कैसी भी हो

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  2. जब हम परमात्मा की चेतना में होते हैं तब हमारे से हर कार्य शुभ ही होता है| ॐ ॐ ॐ ||

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