Thursday 12 January 2017

आत्मज्ञान (Self Realization) ही परम धर्म है ....

आत्मज्ञान (Self Realization) ही परम धर्म है ....
----------------------------------------------------
परमात्मा और अपने आत्मस्वरूप का चिंतन न करना एक बहुत बड़ी हिंसा है| यह निजात्मा का तिरस्कार और आत्म-ह्त्या है|
आत्मदर्शन के पश्चात सारे कर्म उस व्यक्ति को छोड़ देते हैं, वह मुक्त हो जाता है|
आत्मस्वरूप को जानने के प्रयास करने वाले के अतिरिक्त अन्य सब मनुष्य आत्म-हत्या ही कर रहे हैं|
.
जिसे मैं बाहर अन्यत्र ढूँढ रहा था वह कहीं अन्यत्र बाहर नहीं है, वह तो मेरे अस्तित्व का केंद्र बिंदु है|
उसमें और मुझमें कोई भेद नहीं है| भेद अज्ञानता का था|
आत्म-तत्व, गुरु-तत्व और सर्वस्व ...... परमात्मा ही है|

 महत्व स्वयं के "वह" होने का है, कुछ पाने का नहीं|
कौन है वह, जो कुछ ढूँढ रहा है?
जो ढूँढ रहा है वह तो परमात्मा ही है जो अपनी लीला में स्वयं को ही ढूँढ रहा है|
यह पृथकता, यह भेद .... सब उसकी लीला ही है, कोई वास्तविकता नहीं|
.
धर्म, राष्ट्र, समाज और हम सब के समक्ष, बहुत विकराल समस्याएँ हैं| उनके समाधान पर चिंतन अवश्य करना चाहिए| भारत की आत्मा आध्यात्मिक है, और भारत का पुनरुत्थान भी एक विराट आध्यात्मिक शक्ति द्वारा ही होगा|

ॐ आत्मगुरवे नमः | ॐ परमात्मने नमः | ॐ ॐ ॐ ||
ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ ||

2 comments:

  1. गुणगान सिर्फ परमात्मा का हो, हमारा नहीं | हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं | ॐ ॐ ॐ ||

    ReplyDelete
  2. जब कुछ बोलने की बुद्धि हो तभी बोलना चाहिए, अन्यथा चुप रहना ही उचित है | ॐ ॐ ॐ ||

    ReplyDelete