Sunday 23 October 2016

स्वयं की पीड़ा .....

मैं स्वयं की पीड़ा, स्वयं का दुःख और कष्ट तो सहन कर लेता हूँ, पर जो लोग मुझ से जुड़े हुए हैं उनका कष्ट सहन नहीं कर पाता| देखा जाय तो सारी सृष्टि वास्तव में मुझ से ही जुड़ी है|
यह संसार सचमुच दुःख का सागर है| सुख और दुःख से परे की भी कोई तो स्थिति अवश्य ही होगी? असत्य और अन्धकार की शक्तियाँ ही इस समय छाई हुई हैं| कोई इसे माया कहता है, कोई कुछ और, पर ये भी असत्य नहीं हैं|
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कोई कहता है ...... मनुष्य का अहंकार दुखी है, कोई कर्मों का खेल बताता है, तो कोई कुछ और| दुःखी मनुष्य बेचारा ठगों के चक्कर में पड़ जाता है जो आस्थाओं के नाम पर उसका सब कुछ ठग लेते हैं|
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हे प्रभु, यह सृष्टि तुम्हारी है, यह तुम्हारी ही रचना है और तुम स्वयं ही इसके जिम्मेदार हो| सारे सुख-दुःख तुम्हारे हैं| सबकी रक्षा करो| सबको दुखों से मुक्त करो|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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