Sunday 23 October 2016

साधनाओं का पुस्तकीय ज्ञान और गुरु-प्रदत्त ज्ञान ..........

साधनाओं का पुस्तकीय ज्ञान और गुरु-प्रदत्त ज्ञान ..........
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पुस्तकों से और विद्वानों से प्राप्त ज्ञान मात्र बौद्धिक होता है | वह अवचेतन मन में और चित्त में नहीं उतरता |
योग और तंत्र मार्ग में कई साधनाएँ गोपनीय रखी गयी हैं, इसका एकमात्र कारण यह है कि उनका परिणाम दुधारी तलवार की तरह है | उन साधनाओं में साधनाकाल में आचार विचार के बड़े कठोर नियमों जैसे ...यम, नियम...आदि का पालन करना पड़ता है, अन्यथा साधक को कभी ठीक न होने वाली गंभीर दिमागी विकृति हो सकती है | वह आसुरी शक्तियों का एक उपकरण भी बन सकता है | देवता के स्थान पर वह असुर भी बन सकता है | इसलिए पात्रता देखकर ही सद्गुरु शिष्य को उनका ज्ञान देता है और साधनाकाल में सद्गुरु अपने शिष्य की रक्षा भी करता है | मेरा एक सहकर्मी अधिकारी बड़ा प्रखर विद्वान्. चरित्रवान और अच्छा ध्यानयोग साधक था पर कालान्तर में कुसंगति के प्रभाव से आसुरी स्वभाव का होकर एक शराबी, मांसाहारी और परस्त्रीगामी भ्रष्ट असुर हो गया | उसके सारे सद्गुण समाप्त हो गए |
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अपनी बौद्धिक जिज्ञासा को शांत करने के लिए साधनाओं के बारे में जानने में कोई बुराई नहीं है | पर साधना सदा एक ब्रह्मनिष्ठ श्रोत्रिय (जो वेद उपनिषद् आदि श्रुतियों का ज्ञाता और उनका अनुगामी हो) सिद्ध सद्गुरु के मार्गदर्शन में ही आरम्भ करनी चाहिए | सद्गुरु से प्राप्त ज्ञान सीधा गहन चेतना में उतरता है और गुरु का सान्निध्य निरंतर हर प्रकार की भावी विपत्तियों से रक्षा भी करता है |
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भगवान की अहैतुकी भक्ति निरापद है | उसमें कोई खतरा नहीं है | भक्ति के बिना किसी भी मार्ग की साधना सफल नहीं होतीं | भगवान से प्रार्थना करने पर निश्चित रूप से मार्गदर्शन प्राप्त होता है|
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आप सब निजात्माओं को सादर नमन | ॐ नमः शिवाय | ॐॐॐ ||

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