Thursday, 13 February 2025

मुझे निमित्त बनाकर भगवान स्वयं ही अपनी साधना कर रहे हैं ---

 जीवन के इस संध्याकाल में जहां भी भगवान ने मुझे रखा है, वहीं पर भगवान से मुझे अब मानसिक रूप से निरंतर साधना/उपासना की प्रेरणा मिल रही है। मुझे निमित्त बनाकर भगवान स्वयं ही अपनी साधना कर रहे हैं। लौकिक जीवन में मेरे आदर्श श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय हैं। भगवान श्रीकृष्ण की परमकृपा से मुझे पूरा मार्गदर्शन प्राप्त है। किसी भी तरह का कोई संशय नहीं है। यह अवशिष्ट जीवन भगवान को पूर्णतः समर्पित है। भगवान स्वयं ही यह जीवन जी रहे हैं, और जीयेंगे।

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मेरे लिए अभी और लिखने के लिए कुछ नहीं बचा है। जो कुछ भी लिखने की प्रेरणा भगवान से मिली, वह सब खूब लिखा है। अब इस संसार से मन पूर्णतः तृप्त हो गया है, किसी भी तरह की कोई आकांक्षा नहीं रही है। इस बचे हुए जीवनकाल में भगवान जिन-जिन संत-महात्माओं और सदगृहस्थों से मिलवायेंगे उन सब से अवश्य मिलूँगा। जहाँ कोई बहुत प्रेम से बुलायेंगे, तो वहाँ भी क्षमतानुसार अवश्य जाऊँगा। यह अंतःकरण भगवान को समर्पित है।
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सारा अवशिष्ट जीवन भगवान के ध्यान, उपासना और स्वाध्याय में ही बीत जायेगा। जब भी भगवान का आदेश होगा तब ब्रह्मरंध्र के मार्ग से स्वयं ही इस शरीर का त्याग कर के सचेतन रूप से भगवान के धाम चले जायेंगे।
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥१५:६॥ (गीता)
"अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्‌।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥८:२१॥" (गीता)
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकम्
नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः ।
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं
तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ॥ (कठोपनिषद २-२-१५)
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ फरवरी २०२५



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