Monday, 3 February 2025

यह संसार परमात्मा की रचना है, वे स्वयं ही इसके कल्याण के लिए जिम्मेदार हैं ---

 यह संसार परमात्मा की रचना है| वे स्वयं ही इसके कल्याण के लिए जिम्मेदार हैं| हमारा कर्तव्य इतना ही है कि हम अपने जीवन में उन के लिए परमप्रेम (भक्ति) जागृत करें, और यथासंभव पूर्ण रूप से समर्पित होकर उन्हें स्वयं के जीवन में निरंतर व्यक्त करें ---

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(१) सदा अपनी चेतना को आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य उत्तरा-सुषुम्ना में रखने का अभ्यास करते रहें| यह भाव रखें कि स्वयं परमात्मा ही वहाँ बिराजमान हैं और वहीं से वे ही इस जीवन को संचालित कर रहे हैं|
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(२) सदा यह भाव रखें कि -- इस हृदय में वे ही धडक रहें हैं, इन नासिकाओं से वे ही सांस ले रहे हैं, इस अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) में वे ही बिराजमान हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं, इन हाथों से वे ही सारा काम कर रहे हैं, इन आंखो से वे ही देख रहे हैं, वे ही भोजन ग्रहण कर रहे हैं, वे ही पानी पी रहे हैं, वे ही सोच-विचार कर रहे हैं, और हम जो भी कार्य कर रहे हैं, वह हम नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा ही कर रहे हैं| हम जो भी पूजा-पाठ, जप-तप, साधना, ध्यान और क्रिया करते हैं, वह हम नहीं बल्कि स्वयं वे परमात्मा ही कर रहे हैं| यह भाव भी विकसित करें कि हम तो हैं ही नहीं, हमारा कोई अस्तित्व नहीं है, जो भी अस्तित्व है, वह सिर्फ परमात्मा का ही है| नर्क-स्वर्ग आदि की सब कामनायें छोड़ दें| सच्चिदानंद परमात्मा स्वयं ही यहाँ हैं, तो फिर और उनके सिवाय कुछ भी नहीं चाहिए|
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(३) अपने सारे दुःख-सुख, विषाद-हर्ष, अभाव-समृद्धि, बुराइयाँ-अच्छाइयाँ, अवगुण-गुण, -- सब उन्हें बापस सौंप दें| हमारा कुछ भी नहीं है, सब कुछ उनका है| हमारे तो सिर्फ स्वयं परमात्मा ही हैं, और हम उनके हैं|
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(४) अपने हृदय का सारा प्रेम उन्हें सौंप दें| हमारे जीवन में सत्यनिष्ठा हो| नियमित रूप से अपनी-अपनी गुरु-परंपरानुसार साधना करें|
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मुझे मेरे इस जीवन में देश-विदेश में ऐसे बहुत सारे लोग मिले हैं, जो स्वयं से बाहर सुख-शांति ढूंढते थे, वे समाज में प्रतिष्ठित और विद्वान भी थे, फिर भी उनके जीवन में कोई सुख-शांति नहीं थी| उन्होने नाम और पैसा भी खूब कमाया लेकिन अशांत होकर ही मरे| उनके जीवन का एक ही उद्देश्य था -- किसी भी गलत-सही तरीके से खूब पैसा कमाना| परमात्मा -- उनके लिए एक साधन था, साध्य तो संसार था| वे संसार में सुख-शांति ढूंढते-ढूंढते चले गए, जो उनको कभी नहीं मिली|
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आज के समय में अधिकांश लोग ऐसे हैं जिन का पूरा जीवन ही आजीविका के लिए श्रम करते-करते बीत जाता है| ऐसे लोग भी परमात्मा को जीवन का केंद्रबिन्दु बनाकर समर्पित भाव से अपने जीवन में परमात्मा को जीयें|
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आप सब को शुभ कामनायें और सादर नमन !! सब का कल्याण हो|
हरिः ॐ तत्सत् || ॐ ॐ ॐ || 🙏🕉🙏
कृपा शंकर
४ फरवरी २०२१

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