Monday, 3 February 2025

मेरी तीर्थ-यात्रा और त्रिवेणी-संगम में स्नान ---

 मेरी तीर्थ-यात्रा और त्रिवेणी-संगम में स्नान ---

.
परमात्मा ही मेरा एकमात्र तीर्थ है। उनका ध्यान ही मेरे लिए तीर्थयात्रा है। जो त्राण कर दे उस "याति त्राति" -- को ही यात्रा कहते हैं। भ्रूमध्य ही त्रिवेणी संगम है, जहां पर परमात्मा का ध्यान -- त्रिवेणी-संगम में स्नान है। परमात्मा से पृथक कोई तीर्थ नहीं है। इंद्रियों को वासनात्मक विषयों से हटाकर परमात्मा में लगा देना ही वास्तविक तीर्थयात्रा है।
.
लौकिक तीर्थयात्रा उसी की सफल होती है, जो तीर्थ जैसा ही पवित्र होकर वहाँ से बापस लौटता है। केवल यात्रा करने से कोई पुण्य नही होता है। तीर्थयात्रा का एकमात्रा उद्देश्य है -- संत-महात्माओं से सत्संग। वहाँ की जलधारा अति पवित्र होती है, जिसमें स्नान करने से संचित पाप कटते हैं। तीरथों में ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है ब्रह्म का सा आचरण। सारे तीर्थ ज्ञान, वैराग्य और भक्ति प्रदान करते हैं, जिन की ही प्राप्ति के लिये तीर्थ-यात्रा की जाती है।
सभी की तीर्थयात्रा सफल हो। सभी तीर्थयात्रियों को नमन और आशीर्वाद !! ॐ तत्सत् ॥
कृपा शंकर
२ फरवरी २०२५

No comments:

Post a Comment