ध्यान-साधना व भक्ति द्वारा हम कर्मफलों से स्वयं को मुक्त कर सकते हैं। यह एक अंधविश्वास है कि कर्मफलों को भोगने को हम बाध्य हैं। यदि हम बीते हुए कल की अपेक्षा आज अधिक आनंदमय हैं तो निश्चित रूप से आध्यात्मिक प्रगति कर रहे हैं, अन्यथा नहीं कर रहे हैं। आध्यात्मिक प्रगति का एकमात्र मापदंड यही है।
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ब्रह्मज्ञान ही सच्चा प्रकाश है, और ब्रह्मज्ञान में लीन होकर रहना ही श्रेष्ठ तीर्थ है। परमशिव ही हमारे एकमात्र संबंधी हैं, उनमें तन्मय हो जाना ही आनन्द का साधन है। परमात्मा का स्मरण कभी न छूटे, चाहे यह देह इसी समय छूट कर यहीं भस्म हो जाये। परमात्मा के प्रति अहैतुकी (Unconditional) परम प्रेम का उदय, मनुष्य जीवन की महानतम उपलब्धी है।
१५ फरवरी २०२५
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