संसार में सबसे तालमेल कैसे बैठाकर रखें ?
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यह एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसका समाधान बड़ा कठिन है। भगवान से प्रार्थना की तो भगवान ने एक बड़ा सुंदर उपाय बता दिया। भगवान कहते हैं कि --
"परमप्रेममय होकर शत्रु-मित्र, सगे-संबंधी, परिचित-अपरिचित, सभी में, यहाँ तक कि स्वयं में भी मुझ परमात्मा को ही देखो। किसी के प्रति भी घृणा व द्वेष मत रखो।
युद्धभूमि में शत्रु का संहार भी प्रेममय रहते हुए बिना किसी घृणा व द्वेष के करो। अपने हरेक कर्म के पीछे कर्ता परमात्मा को बनाओ और स्वयं निमित्त मात्र बन कर रहो।"
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चारों ओर चाहे कितना भी घना अंधकार हो, लेकिन एक परम ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में एक दिव्य आलोक के दर्शन ध्यान में सभी साधकों को सूक्ष्म जगत से भी परे होते हैं। वही हमारा लक्ष्य और उपास्य है। उसी का ध्यान होता है, और उसी की साधना होती है। साधना में इधर-उधर अन्यत्र कहीं भी दृष्टि न हो।
इसका बहुत गहरा अभ्यास करना पड़ेगा कि मेरे हर विचार में परमात्मा हो, हालाँकि कोई मेरे विचार से सहमत नहीं होगा। हो सकता है लोग मेरी हंसी भी उड़ायें, मुझे मूर्ख, बेवकूफ, अनाड़ी और पागल भी कहें; लेकिन सब स्वीकार्य है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२३ जनवरी २०२३
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