मेरा उद्देश्य ही परमात्मा के प्रति परमप्रेम (भक्ति) को सभी में जागृत करना है। जिन के हृदय में परमात्मा, सनातन-धर्म, और राष्ट्र के प्रति प्रेम नहीं है, वे तुरंत मुझे अमित्र और अवरुद्ध कर दें। मुझे उनसे कोई प्रयोजन नहीं है।
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अथर्ववेद में भूमि-सूक्त है जिसमें भूमि की वंदना की गई है। परमात्मा और धर्म की सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च अभिव्यक्ति भारत में हुई है। अतः भारत, सनातन-धर्म और हिन्दू समाज की निंदा मुझे स्वीकार्य नहीं है।
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हमारा स्वधर्म है निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति !
दिन में चौबीस घंटे, सप्ताह में सातों दिन, परमात्मा को अपनी स्मृति में रखते हुए, उन्हें कर्ता बनाकर, निमित्त मात्र होकर हर कार्य करें। यही हमारा स्वधर्म है।
परमात्मा की विस्मृति परधर्म है।
कृपा शंकर
पुनश्च --- १२ दिसंबर २०२४ जिन के हृदय में परमात्मा, सनातन-धर्म, और राष्ट्र के प्रति प्रेम नहीं है, वे तुरंत मुझे अमित्र और अवरुद्ध कर दें। मुझे उनसे कोई प्रयोजन नहीं है।
अथर्ववेद में भूमि-सूक्त है जिसमें भूमि की वंदना की गई है। परमात्मा और धर्म की सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च अभिव्यक्ति भारत में हुई है। अतः भारत, सनातन-धर्म और हिन्दू समाज की निंदा मुझे स्वीकार्य नहीं है।
हमारा स्वधर्म है निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति !
दिन में चौबीस घंटे, सप्ताह में सातों दिन, परमात्मा को अपनी स्मृति में रखते हुए, उन्हें कर्ता बनाकर, निमित्त मात्र होकर हर कार्य करें। यही हमारा स्वधर्म है।
परमात्मा की विस्मृति परधर्म है।
कृपा शंकर
१२ दिसंबर २०२४
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