नदी-नाव संयोग
(१) फ़ेसबुक जैसे सामाजिक मंच पर आने का मेरा एकमात्र उद्देश्य स्वयं के विचारों और भावनाओं को व्यक्त करना था, जिससे मुझे पूरी संतुष्टि मिली है। मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ, और मुझे किसी से किसी भी तरह की कोई शिकायत नहीं है।
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जैसी जिसकी भावना होती है उसे वैसे ही लोग मिलते हैं। यह जीवन एक नदी-नाव संयोग है। एक नौका नदी में चलती है तो उसके नीचे से पता नहीं कितना पानी बहता है। एक बार जो पानी बह जाता है वह लौटकर दुबारा बापस नहीं आता। हम रेलगाड़ी में यात्रा करते हैं, तब अनेक यात्री मिलते हैं। फिर दुबारा जब यात्रा करते हैं तब वे पुराने यात्री नहीं, नए यात्री ही मिलते हैं। इसी तरह यह जीवन है। जीवन के हर मोड़ पर अनेक जीवात्माएँ मिलती हैं। कोई आवश्यक नहीं है कि वे ही जीवात्माएँ सदा हमारे से मिलें या सदा हमारे साथ रहें।
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उपरोक्त कमी भगवान ने अपनी परम कृपा कर के दूर कर दी है। गुरु महाराज के माध्यम से भगवान ने यह सिखाया है कि वे स्वयं ही सभी रूपों में आते हैं। जब किसी रूप विशेष से हमारा लगाव हो जाता है तो उस रूप विशेष से हमारा वियोग कर देते हैं।
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हम सभी में भगवान को देखें। जब भी समय मिले घर के एकांत में अपने आसन पर बैठें और अपनी अपनी गुरु-परंपरानुसार भगवान का यथासंभव गहनतम ध्यान करें। फिर एक समय ऐसा आयेगा कि हमें सब में भगवान ही दिखाई देंगे। तब जीवन में सज्जन ही सज्जन मिलेंगे, कोई दुर्जन नहीं मिलेगा।
"तुलसी इस संसार में, भाँति-भाँति के लोग।
सबसे हँस-मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥"
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आप सब को परम धन्यवाद !! ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१३ दिसंबर २०२३
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