पूरी सृष्टि मेरे साथ एक होकर भगवान की ही उपासना कर रही है। मैं सांस लेता हूँ तब पूरी सृष्टि मेरे साथ एक होकर सांस लेती हैं। मैं भगवान का ध्यान करता हूँ तब पूरी सृष्टि भगवान का ही ध्यान करती है। भगवान मेरे माध्यम से कुछ कर रहे है तो वे आप सब के माध्यम से ही कुछ कर रहे हैं।
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जो मैं हूँ, वही आप हैं। मैं ही आकाश-तत्व (पुरुष) हूँ, और मैं ही प्राण-तत्व (प्रकृति)। प्रकृति सारे कार्य संपादित कर के पुरुष को अर्पित कर रही है। दूसरे शब्दों में महाकाली ही सारे कार्य कर के श्रीकृष्ण को अर्पित कर रही हैं। हम सब तो निमित्त मात्र हैं।
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मैं कूटस्थ सूर्यमण्डल में भगवान पुरुषोत्तम का ध्यान करता हूँ। यही मेरी साधना है। आप सब भी मेरे साथ एक होकर स्वतः ही पुरुषोत्तम का ध्यान कर रहे हो। जो पुरुषोत्तम हैं, वे ही परमशिव हैं, वे ही श्रीहरिः है और वे ही परमब्रह्म परमात्मा हैं।
प्रार्थना --
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥११:३८॥"
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥११;३९॥"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥११:४०॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
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मैं फेसबुक का आभारी हूँ कि उसने मुझे स्वयं के भावों और विचारों को व्यक्त करने का अवसर दिया। स्वयं को व्यक्त करने के चक्कर में मैंने अनेक सही-गलत जैसे भी भाव आए वैसे ही बहुत सारे छोटे-मोटे लेख लिख डाले। ज्ञान भी बढ़ा और मित्रता व परिचय क्षेत्र भी बढ़ा।
पुनश्च: -- परमशिव पुरुषोत्तम श्रीहरिः परमब्रह्म परमात्मा को नमन !!
परमात्मरूप आप सब को भी नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२६ नवंबर २०२२
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