आध्यात्म में मेरी बौद्धिक भूख-प्यास तो अब तक पूरी तरह तृप्त हो चुकी है। बौद्धिक स्तर पर किसी भी तरह का कोई संशय, या समझने/जानने योग्य कुछ भी नहीं बचा है। महत्वहीन विषयों में मेरी कोई रुचि नहीं है। सिर्फ आत्मा को ही उपलब्ध होने की एक अभीप्सा/उत्कंठा है, जो आत्मा की साधना/उपासना से ही तृप्त होगी। अन्य बौद्धिक विषयों में रुचि समाप्त हो गई है, विहंगावलोकन की भी कोई अभिलाषा नहीं है।
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गंतव्य सामने है, दृष्टि वहीं पर स्थिर है, और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। मेरे साथ क्या होता है, अब इसका कोई महत्व नहीं है। उन अनुभवों से मैं क्या बनता हूँ, सिर्फ उसी का महत्व है। मुझे आप सदा अपने हृदय में पाओगे। भगवान से मेरी एक ही प्रार्थना है कि वे मुझे अनावश्यक गतिविधियों में न उलझाएं, और मुझे सदा अपने हृदय में रखें।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ नवंबर २०२३
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