जीवन का हर पल आनंद है। पूरा जीवन एक उत्सव है। इस उत्सव को भगवान में स्थित होकर मनाओ। भगवान हमारे से पृथक नहीं, हमारे साथ एक हैं। भगवान सत्यनारायण हैं।
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सत्य-सनातन-धर्म की रक्षा स्वयं भगवान करेंगे। वे वचनबद्ध हैं। हम तो धर्म का पालन करें, धर्म हमारी रक्षा करेगा। धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा है। पूरा मार्गदर्शन -- रामायण, महाभारत, उपनिषदों और पुराणों में है। इनका स्वाध्याय तो हमें ही करना होगा।
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भगवान से जुड़ कर ही हम दूसरों का और स्वयं का कल्याण कर सकते हैं। यह सबसे बड़ी सेवा है। निज जीवन में भगवान को व्यक्त करो। हमारा निवास भगवान के हृदय में है, और भगवान का निवास हमारे हृदय में है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ नवंबर २०२३
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पुनश्च: आज सायंकाल में भगवान ने एक बहुत बड़ी सुषुप्ति से बचा दिया। जैसे किसी को बहुत ज़ोर से पिछवाड़े पर डंडा मारकर चेताते हैं, वैसे ही चेता दिया। कल तक जागृति आ ही जाएगी।
भगवान ने सीधे ही पूछ लिया कि तुम होते कौन हो?
प्रत्युत्पन्नमति से कोई उत्तर नहीं आया।
भगवान ने ही कहा कि तुम न तो कर्ता हो, और न भोक्ता। एक साक्षी और निमित्त मात्र हो। वही रहो।
भगवान का आदेश स्वीकार है। मैं एक साक्षी निमित्तमात्र ही हूँ, वही रहूँगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ नवंबर २०२२
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