हमारा पीड़ित, दुःखी और बेचैन होना एक बहुत ही अच्छा और शुभ लक्षण है ---
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अपनी पीड़ा, दुःख और बेचैनी से मुक्त होने की कामना -- भगवान की भक्ति का आरंभ है। जीवन में जो भी अभाव हैं उनकी पूर्ति सिर्फ भगवान की उपस्थिति ही कर सकती है। "संतोष" और "आनंद" दोनों ही हमारे स्वभाव हैं जिनकी प्राप्ति "परम प्रेम" (भक्ति) से ही हो सकती है। हमारे दुःख, पीडाएं और बेचैनी ही हमें भगवान की ओर जाने को बाध्य करते हैं। अगर ये नहीं होंगे तो हमें भगवान कभी भी नहीं मिलेंगे। अतः दुनिया वालो, दुःखी ना हों। भगवान से खूब प्रेम करो, प्रेम करो और पूर्ण प्रेम करो। सारे दुःख दूर हो जाएंगे। हम को सब कुछ मिल जायेगा, स्वयं प्रेममय बन जाओ। अपना दुःख-सुख, अपयश-यश , हानि -लाभ, पाप-पुण्य, विफलता-सफलता, बुराई-अच्छाई, जीवन-मरण यहाँ तक कि अपना अस्तित्व भी सृष्टिकर्ता को बापस सौंप दो। आगे आनंद ही आनंद है।
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जिस नारकीय जीवन को तुम जी रहे हो, उस से तो अच्छा है कि अपने सारे अभाव, दुःख और पीड़ाएं -- बापस भगवान को सौंप दो। "प्रेम" ही भगवान का स्वभाव है। हम एक ही चीज भगवान को दे सकते हैं और वह है हमारा "प्रेम"। भगवान को प्रेम करने में कंजूसी क्यों?
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ नवंबर २०२२
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