Wednesday, 18 September 2024

नर्क, स्वर्ग, सदगति, दुर्गति, मुक्ति, मोक्ष और पुनर्जन्म ---

 नर्क, स्वर्ग, सदगति, दुर्गति, मुक्ति, मोक्ष और पुनर्जन्म --- ये सब हमारे अपने स्वयं के कर्मों पर निर्भर हैं| वास्तव में इन का कोई महत्व भी नहीं है| जीवन में एकमात्र महत्व --परमात्मा का है, जिन्हें हम अपना सर्वस्व अर्पित कर दें| परमात्मा से प्रेम और समर्पण से ही सदगति हो सकती है, न कि किसी कर्मकांड से| अपना स्वयं का किया हुआ सत्कर्म ही काम आता है| हमारा अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) ही पिंड है, जिसे परमात्मा को अर्पण कर देना ही पिंडदान और सच्चा श्राद्ध है| अपना अन्तःकरण पूर्ण रूप से परमात्मा को सौंप दें| इस के लिए हमें सत्यनिष्ठा से परमात्मा की उपासना करनी पड़ेगी|

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भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं ---
"उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्‌| आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः||६:५||"
अर्थात् मनुष्य को चाहिये कि वह अपने मन के द्वारा अपना जन्म-मृत्यु रूपी बन्धन से उद्धार करने का प्रयत्न करे, और अपने को निम्न-योनि में न गिरने दे, क्योंकि यह मन ही जीवात्मा का मित्र है, और यही जीवात्मा का शत्रु भी है||
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श्रुति भगवती भी कहती है ---
"एको हंसः भुवनस्यास्य मध्ये स एवाग्निः सलिले संनिविष्टः |
तमेव विदित्वा अतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय || श्वेताश्वतरोपनिषद:६:१५||"
अर्थात् इस सम्पूर्ण विश्व के अन्तर में 'एक' 'हंसस्वरूपी आत्मसत्ता' है एवं 'वह' अग्निस्वरूप' है जो जल की अतल गहराई में स्थित है| 'उसका' ज्ञान प्राप्त करके व्यक्ति मृत्यु की पकड़ से परे चला जाता है तथा इस महद्-गति के लिए दूसरा कोई मार्ग नहीं है|
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परमात्मा को जानकर ही हम मृत्यु का उल्लंघन कर सकते हैं| परमात्मा को हमें स्वयं ही प्राप्त करना होगा| यह उनकी कृपा और अनुग्रह के द्वारा ही संभव है जो करुणावश वे स्वयं ही कर सकते हैं| श्रुति भगवती ने यहीं यह भी कहा है ---
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः|
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति|| श्वेताश्वतरोपनिषद:६:१४||"
अर्थात् वहाँ न सूर्य प्रकाशित होता है न चन्द्र ही भासमान् है; तारे वहीं अन्धवत् हो जाते हैं; वहीं यह विद्युत् की चमक भी 'उसे' उद्भासित नहीं करती, किसी पार्थिव अग्नि का तो प्रश्न ही नहीं है; जो कुछ भी भास्वर है वह 'उसकी' ज्योति की ही प्रतिच्छाया है तथा 'उसी' की दीप्ति से यह सम्पूर्ण जगत् देदीप्यमान् हो रहा है|
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अपना अंतःकरण भगवान को सौंप दें, यही हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है| यही हमारा सच्चा पिंडदान और श्राद्ध व मुक्ति है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०२०

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