सूक्ष्म देह जब स्थूल देह को त्याग कर चली जाती है, तब वह अपना एक पृथक अस्तित्व बनाये रखती है, जिसे "पितर" कहते हैं। वास्तव में यह प्रेतात्मा ही होती हैं। ये प्रेतात्माएँ एक साथ जिस लोक विशेष में रहती हैं, उसे "पितृलोक" कहा जाता है।
बारह आदित्यों में से एक "अर्यमा" नाम के आदित्य इस "पितृलोक" के देवता होते हैं, जिनका शासन वहाँ चलता है।
गीता के दसवें अध्याय के उनत्तीसवें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को "पितृ़णामर्यमा चास्मि" अर्थात् स्वयं को पित्तरों में अर्यमा बताया है।
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श्राद्ध पक्ष में अपने यहाँ के स्थानीय कर्मकांडी पंडितों से ही सारी जानकारी प्राप्त करें, और उसके अनुसार ही जो करना चाहिए वह करें। गीताप्रेस गोरखपुर की भी एक पुस्तिका इस विषय पर उन की सभी दुकानों पर उपलब्ध है, जिसमें सारी जानकारी दी हुई है।
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आप सब से मेरी एक व्यक्तिगत प्रार्थना है कि १८ सितंबर २०२४ से आरंभ होकर २ अक्टूबर २०२४ तक के पितृ पक्ष में अपने पित्तरों का विधि-विधान से श्राद्ध-कर्म तो करें ही, साथ साथ उनकी सदगति व मुक्ति के लिए कुछ पुण्य कर्म भी करें।
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जिस दिन आपके पित्तरों का श्राद्ध हो, उस दिन श्राद्ध-कर्म के अलावा स्वयं संकल्प लेकर पित्तरों की मुक्ति और सदगति के लिए --- सुंदर कांड, हनुमान चालीसा, या श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ घर पर स्वयं ही करें। उनके निमित्त कुछ भजन-कीर्तन भी स्वयं कर सकते हैं। पितृलोक के देवता भगवान अर्यमा बहुत अधिक दयालु हैं। उनकी कृपा निश्चित रूप से होगी, और वे आपके पित्तरों का कल्याण करेंगे।
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इस पितृपक्ष में मैं कुछ भी नहीं लिखूँगा। मेरी शुभ कामना है कि आप की सात पीढ़ियों का उद्धार हो, और देश को बुरी आत्माओं से मुक्ति मिले।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१७ सितंबर २०२४
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